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ताकत व विश्वास का रिश्ता ‘पिता’

हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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उनकी साँसों से मेरी खुशियाँ (पिता दिवस विशेष)…

संघर्षों की आंधियों में हौंसलों की दीवार है पिता। जब हम हार जाते हैं, फिर कोई रास्ता नहीं दिखाई देता, तो ऐसे समय में मेरे लिए मेरे कन्धों पर जो हाथ होता है, वह पिता जी का ही होता है। वह गुस्से वाले कठोर नजर जरूर आते हैं, पर अंदर से वह दिल के बहुत ही भोले-भाले हैं। मुझे उन्होंने जीवन जीना सिखाया है। कैसे क़दम से क़दम उठा कर चलना भी बताया, कैसे गिर कर फिर खड़े होते हैं, उन्होंने ही बताया। वह पिता का स्वरूप ही है, जो परेशानी में हमारे लिए समाधान की राह बन जाते हैं। खुशियों में वह हमारी मुस्कान बन जाते हैं। वह पिता ही है, जो कभी कुछ चाह नहीं रखते। वह अपने परिवार व बच्चों के लिए पूरा जीवन खपा देते हैं। उनकी साँसें बच्चों को खुश देखना चाहती है। पिता तपते हुए सोने की असली पहचान है। वह हम बच्चों के लिए ताकत व विश्वास के रिश्ते हैं, जो साथ मिलकर हमेशा साथ निभाते हैं, क्योंकि पिता सम्भावना का आँगन हुआ करते हैं। वह बच्चों के साथ खेलते, पढ़ाई कराते, घुमाने ले जाते, नए कपड़े दिलाते, बाजार में खानें की अच्छी-अच्छी चीजें खिलाते हैं, वहीं हम बच्चों के साथ खेलते-खेलते कभी घोड़ा भी बन जाते। हमें कभी भी चोट लगती तो वह मरहम बन दवा का काम करते। पिता बोलते कम हैं, पर काम ज्यादा करते हैं। हमारी शैतानी-मस्ती सभी में खुलती रहती, पर पिता जी अपनी परेशानी-पीड़ा का इजहार नहीं करते, क्योंकि संघर्षों की एक अदभुत कहानी का नाम पिता ही है। वह खुद कठिन परिस्थितियों में वह कभी हार नहीं मानते। वह तो प्रवाहमान धारा में आगे बढ़ते और हम बच्चों को भी जीवन जीने की कला सिखाते हैं। हम किसी भी कठिन परिस्थिति में हार नहीं मानें, ऐसे संकल्पों के सहारे पिता बहुत ही प्रभावी व्यक्तित्व के धनी होते हैं। जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों में जब जब उनकी बात आती है तो, बचपन के लम्हें याद आते हैं। जब हम छोटे हुआ करते थे एवं पिता जी की उंगली पकड़कर चलते और हमें ठोकर लगती तो हम रोते। तब पिता जी बोलते-इतनी-सी लगी और बेटा तुम रोने लगे। अरे इन ठोकरों से सम्हलना चाहिए और गिर जाओ तो उठने की कोशिश करोगे तो तुम कभी भी हार नहीं मानोगे। उनकी ऐसी दूरदर्शी सोच हुआ करती थी, इसलिए आज उनकी कमी जरूर महसूस होती है। वह हमारे लिए तो वृटवक्ष ही थे, जिनके मजबूत इरादों के कारण हम आज भी जिन्दगी में नकारात्मक सोच की ओर नहीं बढ़ते हैं, क्योंकि हमें साहस, विश्वास और दृढ़ संकल्प का भरोसा पिताजी से ही मिला है। इसलिए, हार कर भी हम जीतने का प्रयास करते हैं और आगे बढ़ते रहते हैं। वह तपते हुए सोने के समान थे, जिन्होंने हमें भी खरा सोना बना। उनके आशीर्वाद से हम आगे बढ़ रहे हैं और खुशियों का हर एक पल जी रहे हैं। पिता जी की सीख थी कि, हार से भी हम सीखें और फिर पूरी ताकत से आगे बढ़ें तो जीत जाएंगे। कठिनाइयों में समाधान ढूंढने की कला हमें पिता जी की उंगली पकड़कर ही मिली थी। मैं आज ‘पिता दिवस’ पर अपने पिता जी को बहुत याद करता हूँ।