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तुम नयनों का प्रकाश

सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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तुम आईं घर में तो मानो आ गई बहार,
सिर-आँखों पर बिठा के सबने बहुत तुम्हें किया प्यार
बड़ी हो गई हो तुम अब तो बना तुम्हारा एक संसार,
संग-साथ सखियों का भाता तुमको है हर बार।

खाना, सोना, पढ़ना साथ ही तुमने किया स्वीकार,
बढ़े चलो पथ पर कर लो तुम अपने सपनों को साकार
तुम्हारी सफलता हम सबके लिए है उपहार,
बाँध पतंग में डोर उड़ चलो, कभी न मानो हार।

तुम हो रज प्रभात की जैसे सुरभित चले बयार,
तुम नयनों का हो प्रकाश और घर का रूप श्रृंगार।
आज मिला है तुमको देखो ‘मत’ डालने का अधिकार,
पंख फैलाए मेरी गौरैया हो गई उड़ने को तैयार॥