श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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हरी-हरी डोली में बैठ जाओगी,ओ मेरी रानी,
मचलती रहेगी सेजों पर,तेरी-मेरी प्रेम कहानी।
जुदा हो जाएगा हमसे,सदा के लिए जुड़ा नाता,
तड़पता रहूॅ॑गा तेरे लिए,मत जाओ तोड़ के नाता।
तुम्हें मैं तुम्हारे पीहर से,डोली में बैठाकर लाया था,
फूल खिले थे मन में जब,तुझको दुल्हन बनाया था।
पीहर से विदाई वक्त तुम रो रही थी,मैं था चुपचाप,
आज फिर विदाई वक्त,मैं रो रहा हूॅ॑ तुम हो चुपचाप।
सोच रहा हूँ,हे प्रिये मैं,उस विदाई में कुछ नहीं बोली,
सोचो फिर वही विदाई है,आज भी कुछ नहीं बोली।
हे प्रिये नहीं है हिम्मत मेरी,कैसे तुमको दूँगा कांधा,
जाना था छोड़कर जब,क्यों प्रीत की डोर से बांधा।
जीवन भर की जुदाई दी,कहो मैं कैसे सहन करूॅ॑गा,
सुनो प्रिये,मिलूॅ॑गा जल्द,जुदाई मैं नहीं सह सकूॅ॑गा।
कहानी शुरू हुई थी सात जन्मों की,इस जनम से,
करुँ प्रार्थना,हम-तुम फिर मिलेंगे किसी वचन से॥
परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है।