ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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आज ऐसा कौन है जो दरिद्र नहीं। हर किसी को किसी न किसी प्रकार की दरिद्री है। दरिद्र कई प्रकार के होते हैं,-धन से, तन से, ज्ञान से, समझ से, मन से, रूप से, गुण से, जन से और स्वास्थ्य से।
इस संसार में सम्पूर्ण कुछेक जन ही हैं। एक बलिष्ठ सकल अंगों से परिपूर्ण भिखारी और बड़ी मंहगी गाड़ी में बैठा तन से दिव्यांग गाडी़ का स्वामी। दोनों ही एक-एक वस्तु से हीन हैं। एक दयाहीन सुंदर-स्वस्थ अरबपति, एक कुरूप करोड़पति, कोई गंभीर रोग से ग्रसित युवा या स्वास्थ्य का धनी वृद्ध, स्वस्थ तन में संकीर्ण मन, रोगी मन, भोगी मन और कुंठित संकुचित मन यह भी बौद्धिक दरिद्रता है। द्रव (धन, ₹, पैसा) के बिन जीवन नहीं चलता, तो कौन- सा परिजन, स्वास्थ्य, विवेक, बुद्धि, ज्ञान के बिना भी जीवन चलता है! किसी ने कहा-निरोगी काया परम धन है। किसी ने कहा-स्वस्थ मन सुख की कुंजी है। ये सुख ऐसी चीज है, जो भागता रहता है और लोग उसके पीछे दौड़ लगाते रहते हैं। कभी-कभी लगता है बस पकड़ लिया, अब नहीं भागेगा, किन्तु यह सुख सबसे बडा़ छलिया है। मुठ्ठी से रेत की भाँति फिसलता है और फिर मनुष्य दौड पड़ता है सुख के पीछे। सुख से दरिद्र होना सबसे बड़ी दरिद्रता है।और अनंत स्थाई सुख का पता नहीं, किस वस्तु या पदार्थ में वास है। तब मानव को अवलंबन दिखता है ईश्वर। भक्ति से जो मालामाल है, भौतिक सुख और जगत का मोह त्याग चुका है, कदाचित वह मानसिक धनी हो, किन्तु भौतिक जगत साथ नहीं। तात्पर्य कि अपूर्ण या कहीं न कहीं किसी बात पर दरिद्र ही है।
हम धन-संपत्ति कमाते हैं, महल दुमहले खड़ा कर लेते हैं, स्वर्ण जवाहरात उस महल में भर कर स्वयं अपनी अपनी पीठ थपथपाते हैं, किंतु यहाँ भी भावनात्मक असुरक्षा की दरिद्री है।
जब सभी किसी न किसी बात पर दीन-हीन हैं, तो क्यों इठलाते- इतराते हैं ? चलिए इतरा लिया, वहाँ तक भी सही है। ये दर्प, ये अहंकार क्यों भर लेते हैं मन में!एक दरिद्र दूसरे दरिद्र को कमतर समझने की भूल करता रहता है। और इस फेर में मानव और मानसिक दरिद्र होता रहता है।
परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।