शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान)
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कैसे कहूँ व्यथाएं अपनी समझ नहीं कुछ पाता हूँ,
इन मुश्किल हालातों में मै अपना चैन गँवाता हूँ।
पूर्ण नहीं कर पाया कितने देखे थे मैंने सपने,
भागा था उनके पीछे पर सपने नहीं हुए अपने।
देखा है विश्वास टूटते निर्बल होता जाता हूँ,
इन मुश्किल हालातों…।
क्या ऐसे हालात हो गये सबने नाता तोड दिया,
जिन पर था विश्वास मुझे उनने अपना मुँह मोड़ लिया।
होती पीड़ हृदय में खुद को आज अकेला पाता हूँ,
इन मुश्किल हालातों…।
चंचल शोख़ हवाएं भी अब मुझे जलाने आती हैं,
अब कोई भी मधुर रागिनी मुझको नहीं सुहाती है।
बिन मौसम ही इन आँखों में नीर भरा मैं पाता हूँ,
इन मुश्किल हालातों…।
जीवन जैसे हुआ मरुस्थल इसमें कोई चाह नहीं,
मृगमरीचिका-सा जीवन है दिखती कोई राह नहीं।
सोच-सोच कर ही मैं अपना धीरज खोता जाता हूँ,
इन मुश्किल हालातों में मैं अपना चैन गँवाता हूँ॥
परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है