ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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रचना शिल्प-दोहा आधारित…
रंग न उड़ने दो कभी, रखो बनाकर आब।
जीवन होता मखमली, जैसे फूल गुलाब॥
डाली लगा सुगंध दे, तोड़ो तो गल जाय।
देता सीख जुड़े रहो, अनुनय करे गुलाब॥
ताजा तर रखना सदा, कभी न यह मुरझाय।
जीवन में सुख ये भरे, पानी और गुलाब॥
आकर्षक होता सभी, दु:ख-सुख के ये रंग।
विविध रंग में मोहता, प्यारा फूल गुलाब॥
खिलना इससे सीख लें, खिलता बारह मास।
सबको खुशियाँ बाँटता, हँसता हुआ गुलाब॥
करता बिना बिंँधे गुजर, काँटों के रह संग।
सबका प्यारा बन रहो, कहता हमें गुलाब॥
मंद-मंद बिखरा महक, सबको देता शांति।
समझ समन्वय का हमें, दे संदेश गुलाब॥
परिचय-ममता तिवारी का जन्म १ अक्टूबर १९६८ को हुआ है और जांजगीर-चाम्पा (छग) में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती ममता तिवारी ‘ममता’ एम.ए. तक शिक्षित होकर ब्राम्हण समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य (कविता, छंद, ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नित्य आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो विभिन्न संस्था-संस्थानों से आपने ४०० प्रशंसा-पत्र आदि हासिल किए हैं।आपके नाम प्रकाशित ६ एकल संग्रह-वीरानों के बागबां, साँस-साँस पर पहरे, अंजुरी भर समुंदर, कलयुग, निशिगंधा, शेफालिका, नील-नलीनी हैं तो ४५ साझा संग्रह में सहभागिता है। स्वैच्छिक सेवानिवृत्त शिक्षिका श्रीमती तिवारी की लेखनी का उद्देश्य समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।