कुल पृष्ठ दर्शन : 242

You are currently viewing धरती को अभिमान है

धरती को अभिमान है

विजयलक्ष्मी विभा 
इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश)
************************************

गणतंत्र दिवस विशेष….


देख-देख जिसकी सम्प्रभुता,
धरती को अभिमान है।
कण-कण वाणीमय हो कहता,
भारत देश महान है,मेरा देश महान है॥

यहां प्रकृति की है दिनचर्या,
संयम में रहते दिन-रात।
धरती की आग्या पर चलते,
जाड़े,गर्मी औ बरसात।
स्वयं इसे संचालित करती,
एक परोक्ष शक्ति अग्यात।
यहां चरित्र दिव्य जन-जन के,
पावन धर्म-कर्म विख्यात।
उज्ज्वल तन निर्मल मन प्रति जन,
देवों का वरदान है।
कण-कण…॥

सदा शांति की करे कामना,
मानवता का हो विस्तार।
अखिल विश्व के जन बन जायें,
मिल कर एक सुखद परिवार।
इसका दर्द उसे हो अनुभव,
जैसे माँ-बेटे का प्यार।
नहीं रहे मतभेद कहीं भी,
ऐसा सुन्दर हो संसार।
इस विचार में देख रहा जग,
आगत नया विहान है।
कण-कण…॥

बड़े सबेरे कर फैला कर,
सूरज करता इसे नमन।
रंग-बिरंगी कलियाँ खिल कर,
महका जाती शुभ्र चमन।
हटा ऊष्मा शीतल करता,
दिशा-दिशा को सूक्ष्म पवन।
हरित धरा की तरुणाई को,
दीठ लगाता नील गगन।
खेत जोतता बीज रोपता,
निष्ठवान किसान है।
कण-कण…॥

चंदा चमके,तारे दमकें,
रात रुपहली अलबेेली।
लुक्का-छिप्पी करे अँधेरा,
जुगनू खेलें अठखेली।
सपने कहें अनोखे किस्से,
किस्सों में ठेलम-ठेली।
सुन-सुन कर झेलें सब श्रोता,
बातें कितनी अनझेली।
सौर जगत से सब ग्रह कहते,
भू अपनी पहचान है।
कण-कण…॥

गोधूली बेला में गउएँ,
चलतीं धूल उछालतीं।
खड़ीं द्वार पर नव कुल वधुएँ,
पावन चरण पखारतीं।
उनकी संस्कृति में गौ माता,
सबके कलुष उबारतीं।
आशीषों की वर्षा करके,
जीवन जोत संवारतीं।
मूक अबोध अजब संकोची,
करती जग कल्याण है।
कण-कण…॥

सत्य अहिंसा सत्याग्रह के,
होते हर पल यहां प्रयोग।
सारा विश्व जिसे अपनाये,
यहीं सिखाया जाता योग।
पावन तन में हो पावन मन,
भागें दूर प्रवासी रोग।
सबका हो विकास चारों दिशि,
बन जाता ऐसा संयोग।
वेद पुराण शास्त्रों की यह,
संस्कृति सदा प्रमाण है।
कण-कण…॥

धर्म-जातियां सभी एक हैं,
होता सबका स्वस्थ विकास।
कठिन काम हो तो सब मिल कर,
कर लेते हैं सफल प्रयास।
न्याय सभी को मिलता इसमें,
दिखता कोई नहीं निराश।
सबको जीने की आज़ादी,
सबको अवसर का विश्वास।
यही देश है जिसमें बसता,
सच्चा हर इंसान है।
कण-कण…॥

योग मोद की सुखद मंत्रणा,
सबको मिलता सबका साथ।
एक उठाता कोई बीड़ा,
सभी बंटाते मिलकर हाथ।
निर्भय होकर विचरण करते,
प्रभु को नित्य झुकाते माथ।
सभी सोचते चलते पग-पग,
राम-कृष्ण हैं अपने नाथ।
जहां देखिये भक्ति भाव से,
वहां खड़ा भगवान है।
कण-कण…॥

परिचय-विजयलक्ष्मी खरे की जन्म तारीख २५ अगस्त १९४६ है।आपका नाता मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ से है। वर्तमान में निवास इलाहाबाद स्थित चकिया में है। एम.ए.(हिन्दी,अंग्रेजी,पुरातत्व) सहित बी.एड.भी आपने किया है। आप शिक्षा विभाग में प्राचार्य पद से सेवानिवृत्त हैं। समाज सेवा के निमित्त परिवार एवं बाल कल्याण परियोजना (अजयगढ) में अध्यक्ष पद पर कार्यरत तथा जनपद पंचायत के समाज कल्याण विभाग की सक्रिय सदस्य रही हैं। उपनाम विभा है। लेखन में कविता, गीत, गजल, कहानी, लेख, उपन्यास,परिचर्चाएं एवं सभी प्रकार का सामयिक लेखन करती हैं।आपकी प्रकाशित पुस्तकों में-विजय गीतिका,बूंद-बूंद मन अंखिया पानी-पानी (बहुचर्चित आध्यात्मिक पदों की)और जग में मेरे होने पर(कविता संग्रह)है। ऐसे ही अप्रकाशित में-विहग स्वन,चिंतन,तरंग तथा सीता के मूक प्रश्न सहित करीब १६ हैं। बात सम्मान की करें तो १९९१ में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ.शंकर दयाल शर्मा द्वारा ‘साहित्य श्री’ सम्मान,१९९२ में हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा सम्मान,साहित्य सुरभि सम्मान,१९८४ में सारस्वत सम्मान सहित २००३ में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल की जन्मतिथि पर सम्मान पत्र,२००४ में सारस्वत सम्मान और २०१२ में साहित्य सौरभ मानद उपाधि आदि शामिल हैं। इसी प्रकार पुरस्कार में काव्यकृति ‘जग में मेरे होने पर’ प्रथम पुरस्कार,भारत एक्सीलेंस अवार्ड एवं निबन्ध प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार प्राप्त है। श्रीमती खरे लेखन क्षेत्र में कई संस्थाओं से सम्बद्ध हैं। देश के विभिन्न नगरों-महानगरों में कवि सम्मेलन एवं मुशायरों में भी काव्य पाठ करती हैं। विशेष में बारह वर्ष की अवस्था में रूसी भाई-बहनों के नाम दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए कविता में इक पत्र लिखा था,जो मास्को से प्रकाशित अखबार में रूसी भाषा में अनुवादित कर प्रकाशित की गई थी। इसके प्रति उत्तर में दस हजार रूसी भाई-बहनों के पत्र, चित्र,उपहार और पुस्तकें प्राप्त हुई। विशेष उपलब्धि में आपके खाते में आध्यत्मिक पुस्तक ‘अंखिया पानी-पानी’ पर शोध कार्य होना है। ऐसे ही छात्रा नलिनी शर्मा ने डॉ. पद्मा सिंह के निर्देशन में विजयलक्ष्मी ‘विभा’ की इस पुस्तक के ‘प्रेम और दर्शन’ विषय पर एम.फिल किया है। आपने कुछ किताबों में सम्पादन का सहयोग भी किया है। आपकी रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर भी रचनाओं का प्रसारण हो चुका है।

Leave a Reply