डॉ. संजीदा खानम ‘शाहीन’
जोधपुर (राजस्थान)
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दर्पण तो हकीकत से हैरान नज़र आता है।
हीरा है या पत्थर है अंजान नज़र आता है।
दिल की जमीं पे देखो पहरे यहाँ हजारों,
इस ओर हर बशर ही हैवान नजर आता है।
धोखे मिले हैं इतने किस पर यकीन कर लूं,
इंसान भी यहाँ अब शैतान नज़र आता है।
दर्पण बता रहा है बदहाली इस जगह की,
पहरा नहीं है कोई वीरान नजर आता है।
गर्दिश है जिंदगी में, मायूसी हर तरफ है,
ठहरा हुआ-सा कोई तूफान नज़र आता है।
सूखी ज़मीं तो कब से बंजर दिखाए दर्पण,
अब पूरा इलाका ही बेजान नजर आता है।
लौटा दे मुझको दर्पण गुज़रे हसीं नज़ारे,
दिल आज भी उसी पर कुर्बान नज़र आता है।
‘शाहीन’ दर्द-ए-दिल का कोई इलाज ढूंढो,
सीने में एक अजब-सा तूफान नज़र आता है॥