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नवीन सृजन करते समय सृजक सदैव नवांकुर ही-कांता रॉय

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भोपाल (मप्र)।

साहित्य सृजन हो अथवा रंगमंच, संगीत या अन्य कोई कला सृजन में कोई वरिष्ठ अथवा कनिष्ठ नहीं होता। सृजक सदैव अपना नवीन सृजन करते समय नवांकुर ही होता है।
वरिष्ठ लघुकथाकार और निदेशक (लघुकथा शोध केंद्र समिति भोपाल) कांता रॉय ने यह उदगार अखिल भारतीय कला मंदिर द्वारा विश्व संवाद केंद्र में आयोजित ‘नाट्य मंचीय लघुकथा वाचन’ कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में व्यक्त किए। अध्यक्षता करते हुए कला मंदिर के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. गौरीशंकर शर्मा ‘गौरीश’ ने कहा कि वर्तमान समय लघुकथा के उन्नयन का है और इसमें नाट्य मंचन की असीम संभावनाएं हैं। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ रंगकर्मी डॉ. अश्विनी रंगणेकर ने लघुकथाओं पर लघु फिल्मों के निर्माण द्वारा इसे जन-जन तक पहुंचाने की बात पर बल दिया।

कार्यक्रम में घनश्याम मैथिल ‘अमृत’, मुजफ्फर इकबाल सिद्दीकी, सुनीता प्रकाश, शेफालिका श्रीवास्तव व मधुलिका सक्सेना आदि ने लघुकथाओं का वाचन किया। संचालन मृदुल त्यागी ने किया। विनोद जैन ने आभार प्रकट किया।