हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
*********************************************
मैं नारी हूँ इस दुनिया की,
जो बेटी बनकर आती हूँ।
बनती हूँ मैं ही माॅं सबकी,
नवजीवन जग में लाती हूँ॥
मैं नारी हूँ…
बेटी से पत्नी मै बनती, दस्तूर निभाने की खातिर,
साजन का ऑंगन मिल जाता, पर छूटे है बाबुल का घर।
इक जन्म में जीकर दो जीवन, मैं अपनी उम्र बिताती हूँ,
बनती हूँ मैं ही माॅं सबकी, नवजीवन जग में लाती हूँ।
मैं नारी हूँ…॥
होती है धरती से तुलना, फिर भी अबला ही कहलाती,
सरस्वती, लक्ष्मी, दुर्गा बनकर, हर दौर में ही कुचली जाती।
सम्मानित होती हूँ लेकिन, हैवानों से मसली जाती हूँ,
बनती हूँ मैं ही माॅं सबकी, नवजीवन जग में लाती हूँ।
मैं नारी हूँ…॥
परिचय–हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।