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निजी स्वार्थों में खो गए

नताशा गिरी  ‘शिखा’ 
मुंबई(महाराष्ट्र)
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‘मनरेगा’ में भर्ती होने वालों,
‘अग्निवीर’ की समझ रखते हो… ?

रेल जलाई, बस जलाई ,
पटरी पर है तबाही मचाई।

देश की सेवा करने का,
जज्बा ऐसा रखते हो।

बुजुर्ग फंसे हैं राहों में,
बच्चों में दहशत है छाई।

राजनीति का शिकार हुए हो ?
या स्वयं आज तुम आतंकित हो!

निजी स्वार्थों में खो गए कहीं हो,
देशभक्ति का ऐसा दावा भरते हो।

नहीं, नहीं तुम कोई अग्निवीर हो,
जो राष्ट्रहित में त्याग देते शरीर हो।

शहर-शहर अब गवाह बना है,
असंतोष की चल रही हवा है।

पूरब से लेकर पश्चिम तक,
बंद करो यह उग्र प्रदर्शन।

गाँव, कस्बा, जिला, मोहल्ला,
आक्रोश की आग में झुलस रहा है।

लपटे जो प्रचंड रूप है पकड़ी,
घर तो तुम्हारा भी जलाएंगी।

करनी पलट कर देखो तुम्हारे,
घर का दरवाजा भी खटखटाएंगी॥

परिचय-नताशा गिरी का साहित्यिक उपनाम ‘शिखा’ है। १५ अगस्त १९८६ को ज्ञानपुर भदोही(उत्तर प्रदेश)में जन्मीं नताशा गिरी का वर्तमान में नालासोपारा पश्चिम,पालघर(मुंबई)में स्थाई बसेरा है। हिन्दी-अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाली महाराष्ट्र राज्य वासी शिखा की शिक्षा-स्नातकोत्तर एवं कार्यक्षेत्र-चिकित्सा प्रतिनिधि है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत लोगों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य की भलाई के लिए निःशुल्क शिविर लगाती हैं। लेखन विधा-कविता है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-जनजागृति,आदर्श विचारों को बढ़ावा देना,अच्छाई अनुसरण करना और लोगों से करवाना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद और प्रेरणापुंज भी यही हैं। विशेषज्ञता-निर्भीकता और आत्म स्वाभिमानी होना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अखण्डता को एकता के सूत्र में पिरोने का यही सबसे सही प्रयास है। हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा घोषित किया जाए,और विविधता को समाप्त किया जाए।”

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