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प्रवासी भारतीयों की कामकाज की भाषा अंग्रेजी, तो व्यवहार की हिंदी

संगोष्ठी…

नारनौल (हरियाणा)।

प्रवासी भारतीयों की कामकाज की भाषा अंग्रेजी है, तो व्यवहार की भाषा हिंदी है। प्रवासी भारतीयों ने हिंदी के वैश्विक विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
यह कहना है कॉमनवेल्थ बैंक ऑफ ऑस्ट्रेलिया (सिडनी) के कार्यकारी अधिकारी देवेंद्र यादव का। मनुमुक्त ‘मानव’ मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा ‘विश्व हिंदी दिवस’ के उपलक्ष्य में अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक केंद्र मनुमुक्त भवन में आयोजित संगोष्ठी में बतौर विशिष्ट अतिथि आप उपस्थित रहे। बैंक की अन्य कार्यकारी अधिकारी साइनीथा श्यामसुंदर ने स्पष्ट किया कि, अधिकतर प्रवासी भारतीय चाहते हैं कि उनके बच्चे हिंदी भाषा सीखें, क्योंकि इसके माध्यम से ही वे भारत और भारतीयता से जुड़े रह सकते हैं। सिंघानिया विश्वविद्यालय, पचेरी बड़ी (राजस्थान) के कुलपति डॉ. उमाशंकर यादव ने कहा कि, जब तक हमारी गुलामी की मानसिकता नहीं बदलेगी, भारत में हिंदी पर अंग्रेजी का वर्चस्व बना रहेगा। लखनऊ (उत्तर प्रदेश शासन) के राजभाषा विभाग के अधिकारी संजय श्रीवास्तव ने अध्यक्षीय वक्तव्य में हिंदी को मंडारिन और अंग्रेजी के बाद विश्व की तीसरी सबसे बड़ी भाषा बताते हुए इसे संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनाने की वकालत की। इससे पूर्व विषय-प्रवर्तन करते हुए मुख्य न्यासी डॉ. रामनिवास ‘मानव’ ने स्पष्ट किया कि राजकाज और कामकाज की भाषा बने बिना हिंदी का समुचित विकास संभव नहीं है। लखनऊ से आई वरिष्ठ कवयित्री रश्मि ‘लहर’ ने मधुर काव्य-पाठ में गीत-‘हृदय ठान लो हे वैदेही, एक नया इतिहास लिखो। जितना तुमने झेला मन में, वह अपना संत्रास लिखो॥’ से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।
संगोष्ठी में न्यासी डॉ. कांता भारती, आकांक्षा यादव, श्रद्धा शर्मा और राजेश कुमार की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।

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