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बदले रंग ज़माने के

मधु मिश्रा
नुआपाड़ा(ओडिशा)
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दीपावली पर्व स्पर्धा विशेष ……

“अरे पप्पू यहाँ गाँव में कुम्हार तो है,शायद हरी नाम था उसका..! उससे ही तो दीदी,दीवाली के लिए दीए और कलश वगैरह लेतीं थीं…फ़िर शहर से ये सब क्यों ख़रीद कर ले आए..?” बरसों बाद उत्तर प्रदेश से आई मौसी ने कार से उतरते हुए पप्पू के थैले के रंग-बिरंगे दीयों को देखकर विस्मयपूर्वक कहा..
“अब यहाँ के कुम्हार लोग नहीं बनाते मौसी,वैसे भी इन लोगों के काम में फिनिशिंग भी तो नहीं रहती थी.. देखिए ये कितने सुन्दर सुन्दर दीए हैं,और मार्केट में तो जैसा चाहो बीसियों डिज़ाइन मिलती है..!” पप्पू ने मौसी की जिज्ञासा शांत करते हुए कहा-
“हाँ बेटा,सचमुच ये दीए बहुत सुन्‍दर हैं.. पर एक बात कहूँ बुरा नहीं मानना… दीदी ने बताया था कि उनकी दादी सास के ज़माने से ही हरी कुम्हार के घर से दीए आते थे.. और शादी-ब्याह के समय शगुन के कलश भी उन्हीं लोग लाते थे…। एक बार तो मुझे याद है कुम्हार से डेढ़ सौ दीए और कलश लेने के बाद दीदी ने दीए की कीमत के साथ-साथ उसे दीवाली के ईनाम बतौर अलग से रुपए भी दिए थे..और उसे दीवाली के बाद मिठाई लेने ज़रूर आना,भी कहा था।” अपनी बात कहते-कहते मौसी थोड़ी गंभीर हो गई।”अरे मौसी,ऐसा नहीं है कि हमारे घर से ही दीया नहीं लिया जाता… अब तो गाँव के लगभग सभी लोग शहर से ही मनपसंद दीए लाने लगे हैं..I”
“तो अब हरी कुम्हार करता क्या है बेटा..?”
“उसने पूजा के सामान की दुकान खोल दी है मौसी .. I”
“ओहो… नए ज़माने ने पारंपरिक पेशे को हरा दिया .. आख़िर  करता भी क्या बेचारा…और अब मौसी ने एक लंबी श्वास लेते हुए कहा- हाँ..,कैसे नए ज़माने का रंग पुराने पर चढ़ता चला गया…परिवार की क्षुधा के सामने मिट्टी और चाक धरा का धरा रह गया..। 

परिचय-श्रीमती मधु मिश्रा का बसेरा ओडिशा के जिला नुआपाड़ा स्थित कोमना में स्थाई रुप से है। जन्म १२ मई १९६६ को रायपुर(छत्तीसगढ़) में हुआ है। हिंदी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती मिश्रा ने एम.ए. (समाज शास्त्र-प्रावीण्य सूची में प्रथम)एवं एम.फ़िल.(समाज शास्त्र)की शिक्षा पाई है। कार्य क्षेत्र में गृहिणी हैं। इनकी लेखन विधा-कहानी, कविता,हाइकु व आलेख है। अमेरिका सहित भारत के कई दैनिक समाचार पत्रों में कहानी,लघुकथा व लेखों का २००१ से सतत् प्रकाशन जारी है। लघुकथा संग्रह में भी आपकी लघु कथा शामिल है, तो वेब जाल पर भी प्रकाशित हैं। अखिल भारतीय कहानी प्रतियोगिता में विमल स्मृति सम्मान(तृतीय स्थान)प्राप्त श्रीमती मधु मिश्रा की रचनाएँ साझा काव्य संकलन-अभ्युदय,भाव स्पंदन एवं साझा उपन्यास-बरनाली और लघुकथा संग्रह-लघुकथा संगम में आई हैं। इनकी उपलब्धि-श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान,भाव भूषण,वीणापाणि सम्मान तथा मार्तंड सम्मान मिलना है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-अपने भावों को आकार देना है।पसन्दीदा लेखक-कहानी सम्राट मुंशी प्रेमचंद,महादेवी वर्मा हैं तो प्रेरणापुंज-सदैव परिवार का प्रोत्साहन रहा है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिन्दी मेरी मातृभाषा है,और मुझे लगता है कि मैं हिन्दी में सहजता से अपने भाव व्यक्त कर सकती हूँ,जबकि भारत को हिन्दुस्तान भी कहा जाता है,तो आवश्यकता है कि अधिकांश लोग हिन्दी में अपने भाव व्यक्त करें। अपने देश पर हमें गर्व होना चाहिए।”

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