बोधन राम निषाद ‘राज’
कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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मजबूरी सर है चढ़े, सभी गरीबी आप।
करते बच्चे काम हैं, बाल श्रमिक अभिशाप॥
बाल श्रमिक अभिशाप, पेट के खातिर करते।
दु:ख-पीरा को आज, देख लो कैसे सहते॥
कहे ‘विनायक राज’, धरा पर सुख है दूरी।
जीने को लाचार, बाल श्रम है मजबूरी॥