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बेटी वंदनवार

दुर्गेश कुमार मेघवाल ‘डी.कुमार ‘अजस्र’
बूंदी (राजस्थान)
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जीवन आशाओं की, आन है बेटी,
गाथाएं ‘अजस्र’, गुणगान है बेटी।

विश्वजागृति जन-अभियान है बेटी,
सप्त सावित्री धर्म, पहचान है बेटी।

पिता का आदर्श, सम्मान है बेटी,
खुद माँ का रूप, उपमान है बेटी।

सहर्ष संतति, स्वाभिमान-सी बेटी,
सुरस्वप्नों की, ऊंची उड़ान-सी बेटी।

एक खिलखिलाता-सा, बचपन बेटी,
घर आंगन जगती, दिल धड़कन बेटी।

पिता भाल उजल, चंदन है बेटी,
भाई-कलाई रेशम, बंधन है बेटी।

वंश वृक्ष का फल, अभिनंदन बेटी,
जगजन्म में असुर, निकंदन बेटी ।

काली-दुर्गा-सी, स्त्री-सम्मान है बेटी,
सूने घर की, मीठी मुस्कान है बेटी।

अमर स्वतंत्रता, संविधान में बेटी,
भारत की प्रखर, पहचान में बेटी।

सात पीढ़ियों की, तू तारिणी बेटी,
विश्व स्वरूपा माँ, धारिणी बेटी।

सौम्य सीता सम, सूजान है बेटी,
मीरा भक्ति का, गुणगान है बेटी।

धीर धरा-सी, धर्म मर्यादा बेटी,
सरस्वती-सा रूप-गुण सादा बेटी।

लक्ष्मी से ज्यादा तू, चंचल बेटी,
स्नेहभरा माता का, अंचल बेटी।

क्षुदित मन अमृत, पान है बेटी,
बसंत शोभा तू, परिधान है बेटी।

रामायण गीता, कुरान है बेटी,
बाइबिल संग गुरु, ज्ञान है बेटी।

भारत माता का, विश्वास है बेटी,
पुरुष महान की तो, आस है बेटी।

मणिकर्णिका-सी, वीर भी बेटी,
माँ पन्नाधाय सी, धीर भी बेटी।

द्रोपती का बढ़ता चीर, भी बेटी,
गंगा की ‘अजस्र’ सीर, भी बेटी।

राम का अहिल्या, उद्धार है बेटी,
दर्शन देवी का, अवतार है बेटी।

वैष्णवी भैरव, प्रतिकार भी बेटी,
राधा कृष्ण प्रति, प्यार भी बेटी।

सीता-सावित्री स्नेह, बहार है बेटी,
भारत गरिमा का, सत्कार है बेटी।

कौशल्या का प्रेम, संस्कार है बेटी,
माँ यशोदा का, स्नेह दुलार है बेटी।

भारत गर्भ का वो, इतिहास है बेटी,
संस्कृति वैभव में, कुछ खास है बेटी।

कुल प्रतिष्ठा की तो, पहचान है बेटी,
गुण समाज का, अभिमान है बेटी।

अथाह गार्गी सम, ज्ञान है बेटी,
‘अजस्र’ ज्ञान की, खान है बेटी।

बचपन गुजरा इक, खेल है बेटी,
माँ के सपनों का, मेल है बेटी।

बढ़ते हौंसलों की, रेल है बेटी,
बनी बहू, वंश-बेल है बेटी।

पवित्र गंगा सी, निर्मल है बेटी,
माँ के मन उठती, हलचल है बेटी।

बल बुद्धि गुण की, खान है बेटी,
कुल प्रतिष्ठा की, पहचान है बेटी।

धरती-सी सौंधी, सुगंध है बेटी,
रिश्तों का जोड़, पैबंद है बेटी।

लल्ला यशोदा का, नंद है बेटी,
स्वर्ग से ऊपर, वो आनंद है बेटी।

गुणज समाज, अभिमान है बेटी,
जीवन सीख में, गतिमान है बेटी।

उम्मीद का अनंत, आकाश है बेटी,
बने दुर्गा तो, शत्रु नाश है बेटी।

जीव जगत में, परवाज है बेटी,
सब सुख का, सुर-साज है बेटी।

नहीं बस कन्या का, दान है बेटी,
दो परिवारों का तो, मिलान है बेटी।

असीम आनंद का, स्पर्श है बेटी,
पिता का तो हृदय, हर्ष है बेटी।

भावनाओं की मूल, जान में बेटी,
कुल की मर्यादा, और मान में बेटी।

सागर लहर इक, तूफान में बेटी,
जन्म जो पावे, वो महान है बेटी ।

इतिहास कला, और विज्ञान है बेटी,
इस सृष्टि का अमर, विधान है बेटी।

मातृशक्ति का दिव्य, भान है बेटी,
मातृत्व की ‘अजस्र’, पहचान है बेटी॥

परिचय–आप लेखन क्षेत्र में डी.कुमार’अजस्र’ के नाम से पहचाने जाते हैं। दुर्गेश कुमार मेघवाल की जन्मतिथि-१७ मई १९७७ तथा जन्म स्थान-बूंदी (राजस्थान) है। आप राजस्थान के बूंदी शहर में इंद्रा कॉलोनी में बसे हुए हैं। हिन्दी में स्नातकोत्तर तक शिक्षा लेने के बाद शिक्षा को कार्यक्षेत्र बना रखा है। सामाजिक क्षेत्र में आप शिक्षक के रुप में जागरूकता फैलाते हैं। लेखन विधा-काव्य और आलेख है,और इसके ज़रिए ही सामाजिक मीडिया पर सक्रिय हैं।आपके लेखन का उद्देश्य-नागरी लिपि की सेवा,मन की सन्तुष्टि,यश प्राप्ति और हो सके तो अर्थ प्राप्ति भी है। २०१८ में श्री मेघवाल की रचना का प्रकाशन साझा काव्य संग्रह में हुआ है। आपकी लेखनी को बाबू बालमुकुंद गुप्त साहित्य सेवा सम्मान-२०१७ सहित अन्य से सम्मानित किया गया है|