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बेनाम रिश्ता

जसवंतलाल खटीक
राजसमन्द(राजस्थान)
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सब कुछ थी वह पगली,मेरी जिंदगी व मेरा रब,
मेरे दिल की थी धड़कन,मेरा प्यार मेरा मजहब।

मेरा पहला प्यार थी,किसी की अमानत बन गयी,
मेरे बुने सपनों की मंजिल,पलभर में क्यों ढह गयी।

जीते-जी क्यूँ मार दिया,ऐसा भी क्या गुनाह किया,
दो पंछियों की रूह को,जिस्म से क्यूँ अलग किया।

मेरी भी तो इच्छा होती है,उसके संग-संग जीने की,
जबसे वो छोड़कर चली,लत लगी है मुझे पीने की।

कुछ नहीं सूझता मुझे,बस याद उसकी सताती है,
मेरी बरसती आँखें देखो,हालात मेरे बताती है।

सपने बहुत देखे थे उसके,साथ जीने और मरने के,
कैसे कटेगी जिंदगी अब,टूटे सपने सिन्दूर भरने के।

जीवन के इस सफर में,बची है सिर्फ एक ख्वाहिश,
उसे बना कैसे भी मेरी,कर दे रब छोटी-सी साज़िश।

एक ख्वाहिश पूरी कर दे,तुझपे करूँ जीवन कुर्बान,
जब-जब भी मैं आँखें खोलूं,सामने हो मेरी जान।

गर ये भी ना हो सके तो,अंतिम इच्छा पूरी कर ले,
सारी खुशियां देदे उसे,मुझको तेरी शरण में ले ले॥

परिचय-जसवंतलाल बोलीवाल (खटीक) की शिक्षा बी.टेक.(सी.एस.)है। आपका व्यवसाय किराना दुकान है। निवास गाँव-रतना का गुड़ा(जिला-राजसमन्द, राजस्थान)में है। काव्य गोष्ठी मंच-राजसमन्द से जुड़े हुए श्री खटीक पेशे से सॉफ्टवेयर अभियंता होकर कुछ साल तक उदयपुर में निजी संस्थान में सूचना तकनीकी प्रबंधक के पद पर कार्यरत रहे हैं। कुछ समय पहले ही आपने शौक से लेखन शुरू किया,और अब तक ६५ से ज्यादा कविता लिख ली हैं। हिंदी और राजस्थानी भाषा में रचनाएँ लिखते हैं। समसामयिक और वर्तमान परिस्थियों पर लिखने का शौक है। समय-समय पर समाजसेवा के अंतर्गत विद्यालय में बच्चों की मदद करता रहते हैं। इनकी रचनाएं कई पत्र-पत्रिकाओं में छपी हैं।

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