ताराचन्द वर्मा ‘डाबला’
अलवर(राजस्थान)
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आज राम प्यारी बहुत उदास थी। उसकी आँखों में आँसू बह रहे थे। शायद रोज़ की भांति बहू ने आज भी उसे भला-बुरा कहा है। बेचारी करती भी क्या! असहाय जो ठहरी। शरीर में इतनी ताकत नहीं बची थी कि बहू का मुकाबला कर सके। उसके प्रश्नों का जवाब दें सके। बस हमेशा यही सोचती रहती थी कि भगवान की भक्ति करना क्या गुनाह है ? जिसने सारी दुनिया को बनाया है। जो सुख-दुःख में सबके साथ रहता है,उसे याद करना कोई बुरी बात तो नहीं है।
राम प्यारी बुजुर्ग भक्तिन थी। उसका एक लड़का था,जो एयरपोर्ट में अधिकारी था। उसे छुट्टी बहुत कम मिलती थी इसलिए बहुत कम ही घर पर आना होता था। एक बेटी थी,जो कम उम्र में ही विधवा हो गई थी। बेचारी बड़ी मुश्किल से अपने बच्चों का लालन-पालन कर रही थी। उसका मायके में कम ही आना-जाना होता था। राकेश राम प्यारी का इकलौता बेटा था,जो स्वभाव में बहुत ही सीधा सादा था,लेकिन उसकी पत्नी ‘कोमल’ नाम के बिल्कुल विपरीत बहुत ही कठोर स्वभाव की थी। हमेशा घर में कड़-कड़-बड़-बड़ करती ही रहती थी। राम प्यारी बेचारी ईश्वर की भक्ति में विश्वास करती थी। बहू का जो भी आदेश होता,बेचारी जैसे-तैसे उसे पूरा भी करती। और अगर नहीं कर पाती तो कोमल उसे बहुत बुरा-भला कहती थी।
आज भी कुछ ऐसा ही माजरा हुआ। कोमल बच्चों का टिफिन तैयार कर रही थी। राम प्यारी भगवान की भक्ति में लीन थी। बच्चे शाला के लिए तैयार हो रहे थे। अचानक छोटा बेटा मोनू बाथरूम में फिसल कर गिर गया और जोर-जोर से चिल्लाने लगा। कोमल तुरंत भागकर आई और बच्चे को उठाया। और फिर जो भी मुँह में आया,बड़बड़ाने लगी। तुम्हारी दादी कहाँ है! कुछ देर के लिए बच्चों को सम्भाल नहीं सकती। रोज भजन…भक्ति…तमाशा बना रखा है। सुबह उठते ही भजन,शाम होते ही भजन। थोड़ा बहुत काम करवा लेगी तो मर थोड़े ही जाएगी। जीना हराम कर रखा है।
राम प्यारी ये सब सुन रही थी। भजन से उठकर आई और कंपकंपाती आवाज में कहने लगी-बहू इतना गुस्सा ठीक नहीं। मैं आ ही रही थी और फिर मैं ही तो तैयार करती हूँ बच्चों को रोज। आज थोड़ा लेट हो गई तो आसमान सिर पर उठा लिया। बेटी,बड़े-बुजुर्गों ने कहा है कि “इसी बोली में रस है तो इसी बोली में विष है।” और भगवान का भजन करना कोई बुरी बात नहीं है। तुम्हें ऐसे ताना नहीं देना चाहिए।
इतना सुनते ही कोमल को और भी ज्यादा गुस्सा आ गया। चिल्लाते हुए कहने लगी-बंद करो ये प्रवचन। तुम्हारी सीख तुम्हारे पास ही रखो। हमेशा भजन का बहाना बना कर कमरे में घुस कर बैठी रहती हो। कामचोर कहीं की।
बेचारी राम प्यारी ये सुनकर बड़ी दुखी हुई। उसे बड़ा धक्का लगा। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। वो कुछ बोल नहीं पा रही थी। सारे दिन वो इसी उधेड़बुन में लगी रही कि मैं बुजुर्ग हूँ,फिर भी इतना काम करती हूँ। हे ईश्वर,परम पिता परमेश्वर इसको सद्बुद्धि दे। मैंने हमेशा तेरी भक्ति आराधना की है। ये कैसा घोर कलयुग आ गया है। बड़े-बुजुर्गों की कोई इज्जत ही नहीं है इस घर में। बेचारी राम प्यारी रोए जा रही थी।
आज कोमल ने अपनी सास को खूब डांटा, और उसे कोई पश्चाताप भी नहीं था। सारे दिन बड़बड़ाती रही। ऐसे ही काफी दिन गुजर गए थे। राम प्यारी रोज शाम-सुबह भगवान का भजन और धीरे-धीरे घर के सारे काम-काज भी करती थी।कोमल का ताना भी सुनती और बेवजह उसकी डांट भी खाती थी। वो बहुत दुखी हो गई थी,लेकिन भगवान पर पूरा विश्वास करती थी।
काफी दिन गुजर जाने के बाद एक दिन अचानक राकेश घर आया। बच्चे पापा को देखते ही गले से लिपट गए। राकेश सबसे पहले अपनी माँ के पास गया और उसके पैर छुए। कहने लगा-माँ तुम ठीक तो हो ना! राम प्यारी अपने बेटे को देखते ही खुश हो गई। उसका ममत्व जाग गया और राकेश को गले से लगा कर जोर-जोर से रोने लगी।
कोमल दरवाजे के पीछे से ये सब देख रही थी। सोचने लगी,ये बुढ़िया जरुर राकेश को कुछ उल्टा-सीधा सिखाएगी,पर इसको कुछ कहने तो दो। इनके जाते ही इसकी खैर नहीं।
राकेश ने कहा-माँ सब ठीक तो है! तुम्हें कोई दिक्कत तो नहीं है। तुम्हारी आँखों में आँसू मुझे शंका में डाल रहे हैं। सच-सच बताओ माँ,तुम रो क्यों रही हो ? कोमल तुम्हें अच्छे से तो रखती है ना !
राम प्यारी ने अपने-आपको सम्भाला और कहने लगी-अरे पगले ये तो खुशी के आँसू है। मेरी बहू तो लाखों में एक है,वो भला मुझे क्यों दुःख देगी। वो मेरा बहुत ख्याल रखती है।
अरे! माँ मैं तो घबरा ही गया था।
कोमल को ये सुनकर आश्चर्य हो रहा था। वो मन ही मन पश्चाताप कर रही थी। मेरे इतना दुःख देने पर भी माँजी ने उनसे कुछ नहीं कहा। मैं कितना गलत सोच रही थी।
कोमल,कोमल कहां हो तुम ? राकेश ने आवाज लगाई। कोमल ने राकेश के पैर छुए। कोमल मुझे तुम पर गर्व है। तुम्हारी जैसी पत्नी पाकर मैं धन्य हो गया। तुम कितना काम करती हो। माँ का भी ख्याल रखती हो,बच्चों का भी ध्यान रखती हो। और दोनों कमरे में अन्दर चले गए।
कुछ दिन बीत जाने के बाद राकेश को फिर से ड्यूटी पर जाना पड़ा। कोमल शर्मिंदा थी। वो सोच रही थी कि कैसे माँजी से माफी मांगूं। वो उसके सामने नहीं आ पा रही थी। कोमल सारे दिन अनमनी-सी रहने लगी। उस रात कोमल को नींद नहीं आ रही थी। सास के प्रति अपने व्यवहार पर उसे पश्चाताप हो रहा था। उसका हृदय परिवर्तन हो गया था।
राम प्यारी सुबह जल्दी उठकर भगवान के भजन पर बैठ गई थी। आज वो भी कुछ उदास-सी थी। उसके चहरे से लग रहा था,जैसे वो भी रातभर सो नहीं पाई हो। उसे भगवान का भजन करते करते काफी देर हो गई थी।
इधर,कोमल कुछ समझ नहीं पा रही थी। वो हिम्मत करके अपनी सास के पास गई और झिझकती-सी कहने लगी,-माँजी मुझे माफ़ कर दीजिए। मैं आपको समझ नहीं पाई थी। मेरे इतना प्रताड़ित करने पर भी आपने उनसे कुछ नहीं कहा। भगवान की भक्ति करना कोई बुरी बात नहीं है। मुझे अच्छे से समझ आ गया माँजी। कोमल रो रही थी। उसकी आँखों से आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। माँजी कुछ तो बोलिए। मुझे माफ़ कर दीजिए।
उधर से कोई जवाब नहीं मिला। कोमल ने जैसे ही रामप्यारी को छुआ,वो जमीन पर नीचे लुढ़क गई थी। कोमल की चीख निकल गई…। माँजी…. ये क्या हो गया आपको ! बेचारी राम प्यारी राम की भक्ति करते-करते राम को प्यारी हो गई थी।
परिचय- ताराचंद वर्मा का निवास अलवर (राजस्थान) में है। साहित्यिक क्षेत्र में ‘डाबला’ उपनाम से प्रसिद्ध श्री वर्मा पेशे से शिक्षक हैं। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में कहानी,कविताएं एवं आलेख प्रकाशित हो चुके हैं। आप सतत लेखन में सक्रिय हैं।