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भला वो प्यार कैसा ?

डॉ. संगीता जी. आवचार
परभणी (महाराष्ट्र)
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श्रद्धा हत्याकांड…..

जो जानलेवा होता है वो प्यार कैसा ?
हवस को भला प्यार का नाम कैसा ?
इस्तेमाल कर फेंक दे वो मर्द कैसा ?
टुकड़े-टुकड़े कर दे वो हमदर्द कैसा ?

पैसों से प्यार करे वो है हैवान जैसा!
भरी महफिल से उठाए वो दोस्त कैसा ?
जानवर से बदतर ये आशिक भी कैसा ?
अंग-अंग नोंचने वाला जाहिल मर्द ऐसा!

नाम ‘आफताब’ और कर्म अंधेरे जैसा!
नाम ‘श्रद्धा’ और असमंजस ये कैसा ?
देखा नहीं, मीरा ने प्यार किया कैसा ?
रिश्ता राधा से मोहन का था कैसा!

पसन्द चूक गई तो जीवन है नर्क-सा,
ऐरो-गैरों पे आ जाए वो दिल भी कैसा ?
आँख मूँद के सब सहना भी नहीं ऐसा!
ये सब है बस मौत को न्यौता देने जैसा!

सच्चा प्यार होता है सीप के मोती जैसा,
नसीबवालों को मिलता है तोहफ़े-सा!
औरत का सम्मान हर धर्म में एक जैसा,
बच्चों को समझाया करो जरा जरा-सा!

प्यार होता है कालिदास के ‘शाकुन्तल’-सा,
और होता है शेक्सपियर के ‘सॉनेट’-सा
प्यार होता है महादेवी वर्मा की ‘रचना’-सा,
प्यार होता है गुलजार की ‘नज़्म’-सा!

इसी धरती पर गूँजा था नगमा सुन्दर-सा,
‘हम इंतजार करेंगे कयामत तक’ के साहिर- सा।
‘प्रेम कुणावर करावे’ के कुसुमाग्रज सा…
इनके जैसा नहीं, तो वो प्यार ही कैसा ?

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