मानसी श्रीवास्तव ‘शिवन्या’
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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बादलों की गड़गड़ाहट संग प्रवेश करती है भाद्रपद,
रोशनी कर देती है गगन में बादलों में बिजली की चमक।
बस यही आस लगाए रहती है प्रकृति की,
जल्दी से आ जाए भाद्रपद की अष्टमी।
महत्व है अष्टमी के पावन दिन का,
संकेत देती है यह भगवान श्री कृष्ण के जन्म का।
काली, अंधियारी रात्रि में कान्हा जी होते हैं प्रकट,
स्वागत में मेघ बरसते हैं हर तरफ।
होते हैं उपवास बनते हैं भोग,
सजता है पालना, लगते हैं मोर पंख।
बाल रूपी कान्हा जी की होती है आराधना,
भक्ति व भजन से होती है साधना।
देवकी-वासुदेव के आठवें पुत्र,
जो यशोदा के लल्ला व नंद के लाला कहलाए।
धरती पर कर्मों का फल सिखाने,
श्री हरि अवतार लेकर आए।
मनुष्य योनि में जन्म लेकर गीता का पाठ सिखाया,
अच्छे-बुरे कर्म जो जन्म-जन्म तक साथ रहते हैं, महाभारत में उसका ज्ञान कराया।
श्री कृष्ण ने सदैव कहा है-मान- सम्मान आदर व प्रतिष्ठा,
माता-पिता की सेवा की निष्ठा।
ऐसे ही मनाएं हम श्री कृष्ण की जन्माष्टमी,
भक्तिमय वातावरण में डूबी रहे हर एक नगरी॥