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भारतीय रिज़र्व बैंक और सरकार…नियन्त्रण से परे

अब्दुल हमीद इदरीसी ‘हमीद कानपुरी’
कानपुर(उत्तर प्रदेश)
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१९४९ में अपनेे वर्तमान स्वरूप में आने से लेकर अब तक कभी भी भारत सरकार ने एक मुश्त इतनी बड़ी रक़म (एक लाख छिहत्तर हज़ार करोड़ रुपए) रिजर्व बैंक की आकस्मिक निधि से नहीं ली है। चीन युद्ध के समय आकस्मिक निधि से कुछ धन लिया गया था। ये रिज़र्व बैंक के इतिहास में पहली बार हो रहा है कि इतना पैसा आकस्मिक निधि से निकाल कर सरकार को देने का फैसला किया गया है। वैसे भी इस साल के बजट में उम्मीद जताई गई थी कि रिज़र्व बैंक से ९० हज़ार करोड़ रुपया मिलेगा,लेकिन उससे भी ८६ हजार करोड़ अधिक रुपया आने वाला है। मतलब सरकार ने जितना मांगा,उससे भी अधिक। अगर दो दशक का हिसाब देखें तो २००४ से २०१४ के बीच औसतन २०,००० करोड़ दिए गए। २०१५ से २०१९ के बीच औसतन ५४,००० करोड़ दिए गए। २०१९-२० यानी अकेले इस एक वित्त विर्ष में १,७६,००० करोड़ दिए जाएंगे।
१९९१ में चंद्रशेखर जब प्रधानमंत्री थे,तब विदेशी मुद्रा का संकट आया था। भारत के पास सिर्फ १५ दिन के आयात के लिए पैसा था,तब भारतीय रिज़र्व बैंक के पास रखा हुआ ४७ टन सोना, बैंक ऑफ इंग्लैंड के पास गिरवी रखा गया था। क्या हम उस स्थिति से तुलना कर सकते हैं ? या हालात उससे अधिक खराब हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक ने जो पैसा दिया है,वो अपने दो खातों से दिया है। १,२३,४१४ करोड़ रुपया आकस्मिक निधि से दिया और ५२,६३७ करोड़ रुपया अधिशेष मद यानि (सरप्लस) से दिया है। बिमल जालान कमेटी ने एक हफ्ता पहले ही कुछ सुझाव दिए और जल्दी ही सारे सुझाव मान लिए गए। भारतीय रिज़र्व बैंक के केन्द्रीय बोर्ड ने पौने २ लाख करोड़ रुपया हस्तांतरित करने का फैसला ले लिया। दिसम्बर २०१८ में बिमल जालान के नेतृत्व में समिति बनी थी,जिसके एक सदस्य सुभाष चंद गर्ग ने असहमति जताई थी और दस्तखत करने से इंकार कर दिया। तब श्री गर्ग को दूसरे मंत्रालय में भेज दिया गया और उनकी जगह वित्त सचिव राजीव कुमार आ गए। उसके बाद समिति के फैसले पर सबने सहमति ज़ाहिर कर दी।
बताया गया है कि इस फैसले पर पहुंचने से पहले दुनियाभर के रिजर्व बैंकों के जोखिम का अध्ययन किया गया। ये भी देखा गया कि कितना पैसा रिज़र्व बैंक में रखा जाना चाहिए,तब जाकर फैसला लिया गया।
रिज़र्व बैंक की बैलेंस शीट का ६.५ से ५.५ प्रतिशत की रेंज में रखा जा सकता है,तो बैंक ने न्यूतनम सीमा को अपने लिए स्वीकार कर लिया,अधिकतम को नहीं। इस समिति के पहले रिजर्व बैंक की आकस्मिक निधि ६.८ प्रतिशत हुआ करती थी। भारत के पूर्व मुख्य सांख्यिकी अधिकारी प्रणब सेन का कहना है कि न्यूनतम रेंज के कारण अब रिज़र्व बैंक के पास कोई स्कोप नहीं बचा है। आने वाली सरकारें या यही सरकार आने वाले समय में न्यूनतम रेंज पर ही ज़ोर देती रहेगी। सभी को मालूम है कि,रिज़र्व बैंक को इस नतीजे पर पहुंचने से पहले कड़े विरोध के कई स्तरों से गुज़रना पड़ा है। गवर्नर उर्जित पटेल ने रिज़र्व धन देने से मना कर दिया और समय से पहले अपना पद छोड़कर चले गए,लेकिन रिज़र्व बैंक की स्वायत्तता पर आँच नहीं आने दी। स्वायत्तता के मुद्दे पर सबसे मुखर विरोध डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने किया था। बाद में उन्होंने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
सरकार जो योजना बना रही है,वह टी-२० मैच की तरह है,लेकिन रिजर्व बैंक बहुत आगे की सोच कर योजना बनाता है। पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा था कि,सरकार को रिज़र्व बैंक पर हाथ डालने का प्रयास नहीं करना चाहिए,यह अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं है। अगर आप अपना रिज़र्व सरकार को दे देंगे तो भारत की रेटिंग नीचे आ जानी है। हम क्यों नहीं इस रिज़र्व को बचाकर रख सकते हैं ? रघुराम राजन का कहना है कि सरकार को अतिरिक्त लाभांश देने के लिए रिजर्व बैंक को अतिरिक्त स्थायी रिज़र्व बनाना होगा जैसे और अधिक नोट छापने होंगे। यानी जितना देंगे,उतना आपको लाना होगा। उन्होंने कहा था कि हर साल हम इस बात का ख्याल रखते हैं कि स्थायी रिज़र्व में कितनी वृद्धि हो रही है,अर्थव्यवस्था में कितनी नगदी की ज़रूरत है और मुद्रास्फीति का लक्ष्य क्या है ?,लेकिन पूर्व गवर्नर डी. सुब्बाराव का तर्क था कि केन्द्रीय बैंक अपनी आशंकाओं को कुछ ज़्यादा ही बढ़ा-चढ़ा कर देखने लग जाते हैं। सरकार और रिजर्व बैंक मिलकर रास्ता निकाल सकते हैं।
सरकार इस पैसे का कहां इस्तेमाल करेगी ?, वही जानती है। क्या वह वित्तीय घाटे की भरपाई करने में करेगी या अन्य मदों में। विपक्ष का कहना है कि,इस तरह केन्द्रीय बैंक से धन हस्तांतरण रिज़र्व बैंक की स्वायत्तता पर हमला तो है ही,यह क़दम बताता है कि सरकार की आर्थिक स्थति अत्यन्त दयनीय है। राहुल गांधी ने कहा कि प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री को समझ नहीं आ रहा है कि जो आर्थिक संकट उन्होंने स्वयं पैदा किया है,उसका हल कैसे निकालें ? रिज़र्व बैंक से पैसे लेने से काम नहीं चलेगा,यह गोली से लगे घाव पर डिस्पेंसरी से बैंडेड चुराकर लगाने जैसा है। इसका जवाब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने दिया कि जनता ने उनके चोर वाली बात का सटीक जवाब दे दिया है। उनकी परवाह नहीं है. वित्त मंत्री ने कहा है कि अभी नहीं बता सकती कि रिज़र्व बैंक से मिले पैसे का इस्तेमाल कैसे होगा ?
इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि हालात सामान्य नहीं हैं। हर उपलब्ध मंच से पारदर्शिता का राग अलापने वाली सरकार इस अत्यंत गंभीर मुद्दे पर ज़बान खोलने के लिए भी तैयार नहीं है। इससे जनता का शक और गहराता है। कुल मिलाकर वित्तीय अराजकता का माहौल अपने चरम पर है,कहीं-कोई नियन्त्रण नज़र नहीं आ रहा है। डालर के मुकाबले रुपया दिन-ब-दिन गिरता जा रहा है। ७२ रुपया प्रति डालर के पार पेट्रोलियम उत्पादों की क़ीमत दिन दूनी-रात चौगुनी बढ़ती जा रही है। शेयर बाज़ार धड़ाम हो चुका है। पेट्रोल-डीज़ल की क़ीमत में वृद्धि के कारण किराये में बढ़ोतरी शुरू हो चुकी है। मँहगाई ने पैर पसारना शुरू कर दिए हैं। जनता को बाजा़रवादी ताक़तों के रहमो-करम पर छोड़ दिया गया है।अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार की क्रूर चालों से अनभिज्ञ वित्त मंत्रालय कुछ भी प्रभावशाली क़दम उठाने में खुद को असहाय पा रहा है।

परिचय : अब्दुल हमीद इदरीसी का साहित्यिक उपनाम-हमीद कानपुरी है। आपकी जन्मतिथि-१० मई १९५७ और जन्म स्थान-कानपुर हैl वर्तमान में भी कानपुर स्थित मीरपुर(कैण्ट) में ही निवास हैl उत्तर प्रदेश राज्य के हमीद कानपुरी की शिक्षा-एम.ए. (अर्थशास्त्र) सहित बी.एस-सी.,सी.ए.आई.आई.बी.(बैंकिंग) तथा  सी.ई.बी.ए.(बीमा) हैl कार्यक्षेत्र में नौकरी(वरिष्ठ प्रबन्धक बैंक)में रहे अब्दुल इदरीसी सामाजिक क्षेत्र में समाज और बैंक अधिकारियों के संगठन में पदाधिकारी हैंl इसके अलावा एक समाचार-पत्र एवं मासिक पत्रिका(उप-सम्पादक)से भी जुड़े हुए हैंl लेखन में आपकी विधा-शायरी(ग़ज़ल,गीत,रूबाई,नअ़त) सहित  दोहा लेखन,हाइकू और निबन्ध लेखन भी हैl प्रकाशित कृतियों की बात की जाए तो-नीतिपरक दोहे व ग़ज़लें,एक टुकड़ा आज,ज़र्रा-ज़र्रा ज़िन्दगी,क्योंकि ज़िन्दा हैं हम(ग़ज़ल संग्रह) तथा मीडिया और हिंदी (लेख संग्रह) आपके नाम हैl आपको सम्मान में ज्ञानोदय साहित्य सम्मान विशेष है,जबकि उपलब्धि में सर्वश्रेष्ठ लेखक सम्मान,पीएनबी स्टाफ जर्नल(पीएनबी,दिल्ली) से सर्वश्रेष्ठ कवि सम्मान भी हैl आपके लेखन का उद्देश्य-समाज सुधार और आत्मसंतुष्टि हैl 

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