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प्रारब्ध

सुरेन्द्र सिंह राजपूत हमसफ़र
देवास (मध्यप्रदेश)
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देर रात को नशे में घर लौटे बेटे को नरेश बाबू ने समझाते हुए कहा कि-‘बेटा ऐसा कब तक चलेगा…? तुम रोज देर रात घर लौटते हो,वो भी नशे में,अपने आवारा दोस्तों की संगत में कुछ ज़्यादा ही बिगड़ गए हो। कोई छोटी-मोटी प्रायवेट नौकरी क्यों नहीं ढूंढ लेते। हम कब तक खिलाएंगे हम तुमको,आख़िर एक दिन हमें भी इस संसार से जाना है।’
बेटा बोला-‘जब खिला नहीं सकते तो पैदा ही क्यों किया..?’
इतना सुनते ही नरेश बाबू को बहुत सदमा लगा। उनके सीने में तेज दर्द हुआ और वे वहीं पर गिर गए,तब तक उनका बेटा अपनी बात पूरी करता हुआ अपने कमरे में जा चुका था। पत्नी अन्दर से आई,तब तक नरेश बाबू बेहोश हो चुके थे। हार्ट अटैक के झटके से तो नरेश बाबू बच गए थे,लेकिन अस्पताल के आईसीयू वार्ड में उनकी आँखों से झर-झर पानी बह रहा था। वे सोच रहे थे कि क्या यही दिन देखने के लिए परमेश्वर से बेटे की मन्नत मांगी थी…,हे भगवान इससे तो बेटी ही हो जाती तो अच्छा था…।
अक्सर देखा गया है कि पुरुषार्थ दुर्भाग्य को परास्त कर देता है,लेकिन यदि मनुष्य को उसके प्रारब्ध का प्रतिफल मिलना है तो उसका सारा ज्ञान,विवेक और पुरुषार्थ धरा रह जाता है। कुछ ऐसा ही किस्सा था नरेश बाबू का। उन्होंने शिक्षा विभाग में एक आदर्श शिक्षक के रूप में सेवा करते हुए अपने विद्यालय से सैकड़ों छात्र-छात्राओं को अपनी शिक्षा और संस्कार से बहुत ऊँचे मुक़ाम पर पहुँचाया। यही कारण था आज उनके पढ़ाए हुए विद्यार्थियों में अधिकांश बड़े-बड़े पदों पर आसीन थे। कोई  कलेक्टर था तो कोई व्यापारी,कोई इंजीनियर था तो कोई शिक्षक। यहाँ तक कि उनके कुछ शिष्य तो विदेशों में सेवाएं देकर अपने परिवार और विद्यालय का नाम गौरवान्वित कर रहे थे,परन्तु ये नरेश बाबू का दुर्भाग्य ही था कि वे अपने एकमात्र बेटे जो बड़ी मान-मन्नत व देवकृपा से प्राप्त हुआ था,को क्लर्क भी नहीं बना पाए थे। गरीबी या अभावों में पढ़े- लिखे बच्चे अमीरी व सुख-सुविधाओं में पढ़ने लिखने वाले बच्चों की तुलना में ज़्यादा होशियार और पढ़ाई में अच्छे होते हैं। नरेश बाबू का बेटा भी पिता के शासकीय ओहदे से मिली सुख-सुविधा और माँ के अत्यधिक लाड़-दुलार में मोहल्ले के गलत लड़कों की संगत में पढ़कर बर्बाद हो चुका था। शायद ये नरेश बाबू का कोई ‘प्रारब्ध’ ही था,जिसे वे अपने ज्ञान,विवेक और पुरुषार्थ से भी नहीं हरा सके थे।

परिचय-सुरेन्द्र सिंह राजपूत का साहित्यिक उपनाम ‘हमसफ़र’ है। २६ सितम्बर १९६४ को सीहोर (मध्यप्रदेश) में आपका जन्म हुआ है। वर्तमान में मक्सी रोड देवास (मध्यप्रदेश) स्थित आवास नगर में स्थाई रूप से बसे हुए हैं। भाषा ज्ञान हिन्दी का रखते हैं। मध्यप्रदेश के वासी श्री राजपूत की शिक्षा-बी.कॉम. एवं तकनीकी शिक्षा(आई.टी.आई.) है।कार्यक्षेत्र-शासकीय नौकरी (उज्जैन) है। सामाजिक गतिविधि में देवास में कुछ संस्थाओं में पद का निर्वहन कर रहे हैं। आप राष्ट्र चिन्तन एवं देशहित में काव्य लेखन सहित महाविद्यालय में विद्यार्थियों को सद्कार्यों के लिए प्रेरित-उत्साहित करते हैं। लेखन विधा-व्यंग्य,गीत,लेख,मुक्तक तथा लघुकथा है। १० साझा संकलनों में रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है तो अनेक रचनाओं का प्रकाशन पत्र-पत्रिकाओं में भी जारी है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में अनेक साहित्य संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है। इसमें मुख्य-डॉ.कविता किरण सम्मान-२०१६, ‘आगमन’ सम्मान-२०१५,स्वतंत्र सम्मान-२०१७ और साहित्य सृजन सम्मान-२०१८( नेपाल)हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्य लेखन से प्राप्त अनेक सम्मान,आकाशवाणी इन्दौर पर रचना पाठ व न्यूज़ चैनल पर प्रसारित ‘कवि दरबार’ में प्रस्तुति है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज और राष्ट्र की प्रगति यानि ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद, मैथिलीशरण गुप्त,सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ एवं कवि गोपालदास ‘नीरज’ हैं। प्रेरणा पुंज-सर्वप्रथम माँ वीणा वादिनी की कृपा और डॉ.कविता किरण,शशिकान्त यादव सहित अनेक क़लमकार हैं। विशेषज्ञता-सरल,सहज राष्ट्र के लिए समर्पित और अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिये जुनूनी हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
“माँ और मातृभूमि स्वर्ग से बढ़कर होती है,हमें अपनी मातृभाषा हिन्दी और मातृभूमि भारत के लिए तन-मन-धन से सपर्पित रहना चाहिए।”

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