मधु मिश्रा
नुआपाड़ा(ओडिशा)
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बसंत पंचमी विशेष….
हे माँ विद्या दायिनी,
तुम वीणापाणि…।
श्वेत पद्मासिनी,
आओ ठाकुराणी…॥
तुम्हरी कृपा से मैया,
बुद्धि का वरदान मिले।
मूक भी वाचाल हुए और,
शब्दों की बगिया खिले…॥
सर्व हृदय के शब्द हैं तुममें,
तुम संगीत की तान भी हो…।
तुम्हरे गुण कैसे मैं गाऊँ,
तुम मेरा अभिमान भी हो…॥
शब्दों का अथाह सागर,
माँ तुममें है समाया…।
चंद शब्दों के फूल से तुमने,
मेरी बगिया को है सजाया…॥
दिगदिगन्त है तुमसे माँ,
और तुमसे मेरा बसंत…।
फ़ूल-सी दया तुम्हारी,
जिसका नहीं है अंत…॥
किसी शिखर तक पहुँच जाऊँ,
ये मुझमें है औकात कहाँ…।
बस तेरे चरणों के फूलों सा,
सुवासित हो जाए मेरा जहाँ…॥
कैसे माँ मैं करूँ वन्दना,
कैसे तुझे रिझाऊँ…।
अपनी हर ग़लती के लिए,
मैं तो नतमस्तक हो जाऊँ…॥
आओ माँ,अब दे जाओ,
मुझे भी इक वरदान…।
स्नेह से प्रज्वलित कर दो,
मेरा भी सारा जहान…॥
परिचय-श्रीमती मधु मिश्रा का बसेरा ओडिशा के जिला नुआपाड़ा स्थित कोमना में स्थाई रुप से है। जन्म १२ मई १९६६ को रायपुर(छत्तीसगढ़) में हुआ है। हिंदी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती मिश्रा ने एम.ए. (समाज शास्त्र-प्रावीण्य सूची में प्रथम)एवं एम.फ़िल.(समाज शास्त्र)की शिक्षा पाई है। कार्य क्षेत्र में गृहिणी हैं। इनकी लेखन विधा-कहानी, कविता,हाइकु व आलेख है। अमेरिका सहित भारत के कई दैनिक समाचार पत्रों में कहानी,लघुकथा व लेखों का २००१ से सतत् प्रकाशन जारी है। लघुकथा संग्रह में भी आपकी लघु कथा शामिल है, तो वेब जाल पर भी प्रकाशित हैं। अखिल भारतीय कहानी प्रतियोगिता में विमल स्मृति सम्मान(तृतीय स्थान)प्राप्त श्रीमती मधु मिश्रा की रचनाएँ साझा काव्य संकलन-अभ्युदय,भाव स्पंदन एवं साझा उपन्यास-बरनाली और लघुकथा संग्रह-लघुकथा संगम में आई हैं। इनकी उपलब्धि-श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान,भाव भूषण,वीणापाणि सम्मान तथा मार्तंड सम्मान मिलना है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-अपने भावों को आकार देना है।पसन्दीदा लेखक-कहानी सम्राट मुंशी प्रेमचंद,महादेवी वर्मा हैं तो प्रेरणापुंज-सदैव परिवार का प्रोत्साहन रहा है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिन्दी मेरी मातृभाषा है,और मुझे लगता है कि मैं हिन्दी में सहजता से अपने भाव व्यक्त कर सकती हूँ,जबकि भारत को हिन्दुस्तान भी कहा जाता है,तो आवश्यकता है कि अधिकांश लोग हिन्दी में अपने भाव व्यक्त करें। अपने देश पर हमें गर्व होना चाहिए।”