सुनीता रावत
अजमेर(राजस्थान)
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आदाबो एहतराम ऐ मेरी माँ तुझे,
झुक-झुक करूं सलाम ऐ मेरी माँ तुझे।
बाँहों के पालने में झुलाती रही मुझे,
लोरी हरेक रात सुनाती रही मुझे।
अच्छे-बुरे का पाठ पढ़ाती रही मुझे,
दुनिया की बदनज़र से बचाती रही मुझे।
कंधे पे जग की सैर कराती रही मुझे,
गोदी में लेके लाड़ लड़ाती रही मुझे।
लफ़्ज़ों के दम से दूर है तेरी महानता,
मैं आज क्या दूँ नाम ऐ मेरी माँ तुझे।
मेरी शरारतों का भी शिकवा नहीं किया,
थप्पड़ भी मेरे गाल पे चस्पा नहीं किया।
गुस्से में आके बाग को सहरा नहीं किया,
दो पल भी अपने-आपसे तन्हा नहीं किया।
सपना भला वो कौन-सा पूरा नहीं किया,
देखो तो मेरे वास्ते क्या क्या नहीं किया।
ईश्वर से भी बढ़ के तेरी हैं यह रहमतें,
क्या दे कोई इनाम ऐ मेरी माँ तुझे।
माँ के बिना सूना है जहाँ, अधूरी है खुशी,
झुक-झुक करूं सलाम ऐ मेरी माँ तुझे…॥