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माँ तू कैसे छली गई!

डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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कहाँ गए वो लाल तेरे माँ,
कोख में जिनको बड़ा किया
आज उन्होंने लाकर तुझको,
किस मोड़ पर खड़ा किया।

जिस संतान पर वारा जीवन,
वही छोड़कर चली गई
अपने कलेजे के टुकड़ों से,
माँ तू कैसे छली गई।

संतानों की तकलीफों पर,
तू कैसे रोया करती थी
जब सो जाते थे लाल तेरे,
बस तभी तू सोया करती थी।

कितनी रातें जागीं माँ तुम,
बोझिल-बोझिल पलकों से
कितने दिन पानी तक भी न,
उतरा माँ तेरे हलक से।

सोचा था क्या देखोगी माँ,
इस जीवन में ऐसे दिन भी
रह लेंगी माँ तेरी संतानें,
दुनिया में क्या तेरे बिन भी।

कैसे बैठी माँ आकर तुम,
निर्जन-सी अकेली राहों में।
कौन सहारा देगा तुमको,
अब लेकर अपनी बाँहों में॥

परिचय– डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी ने एम.एस-सी. सहित डी.एस-सी. एवं पी-एच.डी. की उपाधि हासिल की है। आपकी जन्म तारीख २५ अक्टूबर १९५८ है। अनेक वैज्ञानिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित डॉ. बाजपेयी का स्थाई बसेरा जबलपुर (मप्र) में बसेरा है। आपको हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-शासकीय विज्ञान महाविद्यालय (जबलपुर) में नौकरी (प्राध्यापक) है। इनकी लेखन विधा-काव्य और आलेख है।

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