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माटी की गुड़िया

रश्मि लता मिश्रा
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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मैं माटी की गुड़िया हूँ,
मिट्टी में मिल जाना है।
माना शक्ल मेरी भी थी,
कहते लोग खजाना है।
सुंदर आँखें,गोरा रंग था,
लटें भी थीं घुंघराली
होंठ गुलाबी,चाल हिरनिया,
मैं भी थी मतवाली।
क्रूर नापाक पंजों से,पर
कर ना पाई सुरक्षा।
जानवरों के उन पंजों ने,
देखो मुझे खरोंचा।
सारी सुंदरता को मेरी,
मसल दिया दरिंदों ने।
काँच के जैसे बिखर गई मैं,
आकर उनके फन्दों में।
हँसते-खेलते जीवन को,
मिट्टी में मिला दिया।
वीभत्स मानसिकता ने
गुड़िया माटी की बना दिया,
गुड़िया माटी की बना दिया…ll

परिचय-रश्मि लता मिश्रा का बसेरा बिलासपुर (छत्तीसगढ़) में है। जन्म तारीख़ ३० जून १९५७ और जन्म स्थान-बिलासपुर है। स्थाई रुप से यहीं की निवासी रश्मि लता मिश्रा को हिन्दी भाषा का ज्ञान है। छत्तीसगढ़ से सम्बन्ध रखने वाली रश्मि ने हिंदी विषय में स्नातकोत्तर की शिक्षा प्राप्त की है। आपका कार्यक्षेत्र-शिक्षण(सेवानिवृत्त शिक्षिका )रहा है। सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत समाज में उपाध्यक्ष सहित कईं सामाजिक-साहित्यिक संस्थाओं में भी पदाधिकारी हैं। सभी विधा में लिखने वाली रश्मि जी के २ भजन संग्रह-राम रस एवं दुर्गा नवरस प्रकाशित हैं तो काव्य संग्रह-‘मेरी अनुभूतियां’ एवं ‘गुलदस्ता’ का प्रकाशन भी होना है। कईं पत्र-पत्रिकाओं में इनकी रचनाएं प्रकाशित हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में-भावांजलि काव्योत्सव,उत्तराखंड की जिया आदि प्रमुख हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-नवसृजन एवं हिंदी भाषा के उन्नयन में सहयोग करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ एवं मुंशी प्रेमचंद हैं। प्रेरणापुंज-मेहरून्निसा परवेज़ तथा महेश सक्सेना हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी भाषा देश को एक सूत्र में बांधने का सशक्त माध्यम है।” जीवन लक्ष्य-निज भाषा की उन्नति में यथासंभव योगदान जो देश के लिए भी होगा।

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