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दीमक बनकर चाट रहा स्वांग

मालती मिश्रा ‘मयंती’
दिल्ली
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बेटियाँ बचाने का नारा,
सुनकर माँ हरषायी थी।
तब ले के बिटिया की बलाएँ,
वह ममता बरसायी थीll

नहीं जानती थी वह माता,
यहाँ दरिंदे रहते हैं।
दरिंदगी की हदें पार कर,
खुद को मानव कहते हैंll

नन्हीं कलियाँ नहीं सुरक्षित,
अपने ही गलियारों में।
जीना उनका दुष्कर हो गया,
घर-बाहर-चौबारों मेंll

कब तक माँ आँचल में रखकर,
कैसे उसे सुरक्षा दे।
बंद कोठरी में बिटिया को,
रखकर कैसे शिक्षा देll

दीमक बनकर चाट रहा है,
स्वांग यह भाईचारे का।
घर-घर में अब पतन हो रहा,
नैतिकता के नारे काll

परिचय-मालती मिश्रा का साहित्यिक उपनाम ‘मयंती’ है। ३० अक्टूबर १९७७ को उत्तर प्रदेश केसंत कबीर नगर में जन्मीं हैं। वर्तमान में दिल्ली में बसी हुई हैं। मालती मिश्रा की शिक्षा-स्नातकोत्तर (हिन्दी)और कार्यक्षेत्र-अध्यापन का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप साहित्य सेवा में सक्रिय हैं तो लेखन विधा-काव्य(छंदमुक्त, छंदाधारित),कहानी और लेख है।भाषा ज्ञान-हिन्दी तथा अंग्रेजी का है। २ एकल पुस्तकें-अन्तर्ध्वनि (काव्य संग्रह) और इंतजार (कहानी संग्रह) प्रकाशित है तो ३ साझा संग्रह में भी रचना है। कई पत्र-पत्रिकाओं में काव्य व लेख प्रकाशित होते रहते हैं। ब्लॉग पर भी लिखते हैं। इनकी लेखनी का उद्देश्य-साहित्य सेवा,हिन्दी भाषा का प्रसार तथा नारी जागरूकता है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-अन्तर्मन से स्वतः प्रेरित होना है।विशेषज्ञता-कहानी लेखन में है तो रुचि-पठन-पाठन में है।

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