दुर्गेश कुमार मेघवाल ‘डी.कुमार ‘अजस्र’
बूंदी (राजस्थान)
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सब ‘धरा’ रह जाएगा (पर्यावरण दिवस विशेष)…
धरा में ही धरा है सब कुछ,
धरा से ही तुझे मिला है सब कुछ।
अनमोल वसु ये हवा, पानी,
इनका तू क्या मोल, चुकाएगा ?
इनसे ही जिया, इसमें ही मरे,
इससे तू जीत ना पाएगा।
ऐ मानव अब तो जाग जरा,
तू धरा का धरा रह जाएगा…॥
पाया शरीर तूने पंचतत्वों से,
सबका अपना अपना काम।
नष्ट इन्हें तू अंध कर रहा,
बिगड़ रहा स्वरूप तमाम।
तुच्छ स्वार्थों को पाने से,
तू समूल नष्ट हो जाएगा।
ऐ मानव अब तो जाग जरा…॥
चाल प्रकृति दिन व वर्ष की,
सब नियत अरबों वर्षों से।
प्राणी कितने आए गए पर,
स्वरूप अमर है वर्षों से।
तंत्र नियंत्रित अदृश हाथों में,
बिगाड़ कोई क्या पाएगा।
ऐ मानव अब तो जाग जरा…॥
पेड़ पहाड़ नदियाँ सागर सब,
सजीव निर्जीव यह पारितंत्र।
जीवन तुझको, सब कुछ दे रहे,
कदम-कदम के संसा-संत्र॥
सोने के अंडे पाकर भी जो तू,
लोभ छोड़ ना पाएगा।
ऐ मानव अब तो जाग जरा…॥
सभ्यता, संस्कृति, विज्ञान, आविष्कार,
समाज, राजनीति, देश तमाम।
‘अजस्र’ ऊँचाई तूने सब पाई,
प्राणियों में तू सिरमौर महान॥
‘खेला’ तूने सब कुछ खेला,
तेरा खेल बिगड़ सब जाएगा।
ऐ मानव अब तो जाग जरा….॥
समय अभी है जतन कुछ कर ले,
लोभ स्वार्थों से पीछे हटकर।
हरियाली ही धरा का गहना,
पेड़ धरा के सब अमृत कर॥
तेरे दुष्कर्मों से नहीं तो,
‘अजस्र’ तंत्र मर जाएगा।
ऐ, मानव अब तो जाग जरा,
तू धरा का धरा रह जाएगा…॥
परिचय–आप लेखन क्षेत्र में डी.कुमार’अजस्र’ के नाम से पहचाने जाते हैं। दुर्गेश कुमार मेघवाल की जन्मतिथि-१७ मई १९७७ तथा जन्म स्थान-बूंदी (राजस्थान) है। आप राजस्थान के बूंदी शहर में इंद्रा कॉलोनी में बसे हुए हैं। हिन्दी में स्नातकोत्तर तक शिक्षा लेने के बाद शिक्षा को कार्यक्षेत्र बना रखा है। सामाजिक क्षेत्र में आप शिक्षक के रुप में जागरूकता फैलाते हैं। लेखन विधा-काव्य और आलेख है,और इसके ज़रिए ही सामाजिक मीडिया पर सक्रिय हैं।आपके लेखन का उद्देश्य-नागरी लिपि की सेवा,मन की सन्तुष्टि,यश प्राप्ति और हो सके तो अर्थ प्राप्ति भी है। २०१८ में श्री मेघवाल की रचना का प्रकाशन साझा काव्य संग्रह में हुआ है। आपकी लेखनी को बाबू बालमुकुंद गुप्त साहित्य सेवा सम्मान-२०१७ सहित अन्य से सम्मानित किया गया है|