वाणी वर्मा कर्ण
मोरंग(बिराट नगर)
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दर्द किसे नहीं इस जमाने में,
फिर भी आँखों से मुस्कुराते हैं।
हर दर्द के पीछे हज़ारों ख्वाहिशें,
उन ख्वाहिशों की उम्र पर मुस्कुराते हैं।
छोड़ दें,गम न करें तो क्या करें,
जमाने की इस अदा पर मुस्कुराते हैं।
वक़्त बदला अपने भी बदले,
वक़्त की बेवफाई पर मुस्कुराते हैं।
दिल का लगाना जैसे हो कोई गुनाह,
दिल की मासूमियत पर मुस्कुराते हैं।
मिट्टी का घरौंदा टूटना था टूटा,
अपने टूटे वजूद पर मुस्कुराते हैं।
सबकी तकदीर में खुशी नहीं शायद,
किस्मत की लकीरों पर मुस्कुराते हैं।
पाक दिल का होना ही काफी नहीं था,
फरेबी जज्बातों पर मुस्कुराते हैं।
मन भर गया इस जहां से ये खुदा,
अपनी इस जिंदगी पर मुस्कुराते हैं॥