रत्ना बापुली
लखनऊ (उत्तरप्रदेश)
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माँ बिन…!
कैसे भूलू माँ मैं तुझको,
मेरा यह जीवन तेरा है
तेरे ही फूल से हाथों ने
मुझको हरपल सँवारा है।
बीमार रही पर हरदम,
ख्याल मेरा तू रखती थी
मेरे कोमल तन पर कोई,
आँच न आने देती थी।
शीत की लहरों से बचाने,
स्वयं स्वेटर बुनती थी
न जाने क्या-क्या सपने,
मेरे लिए तू गुनती थी।
संस्कारों की सीख देकर,
मुझे दुनिया दिखाती थी
भले-बुरे की पहचान करा,
जीवन निभाना सिखाती थी।
‘मातृभाषा’ का महत्व बता,
बंगला मुझे सिखाई थी
साहित्य जगत से प्रेम करूं,
बात तुमने ही बताई थी।
आज मैं जो कुछ भी हूँ,
तेरा ही आशीष अनोखा है।
तेरी ही आँखों से मैंने,
इस जग को देखा है॥