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मैं भी आज तिरंगे में होता…

ताराचन्द वर्मा ‘डाबला’
अलवर(राजस्थान)
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अपना सम्मान तिरंगा…

एक डाल पर मैना बैठी,
एक डाल पर बैठा तोता
तोता बोला,-सुन औ मैना,
काश! मैं भी सैनिक होता।

मैं भी तिरंगे की लाज बचाता,
देश की खातिर गर्वित होता
लिपट कर तिरंगे में आज,
देखो कई शहीद घर आए हैं
देश की खातिर इन्होंने,
अपने प्राण गंवाए हैं।

मैं भी आज तिरंगे में होता,
देश के लिए चिर निद्रा में सोता
कर गए अलविदा वतन को,
भारत माता के रखवाले
कह गए सुन लो नौ जवानों,
अब ये देश तुम्हारे हवाले।
काश! मैं भी सैनिक होता,
देश की खातिर जान गंवाता।

इन वीरों ने खून बहाया है,
दुश्मन को मार भगाया है
सरहद पर मरते-मरते अपना,
परचम लहराया है
काश! मैं भी अपना खून बहाता,
सरहद पर तिरंगा लहराता।

ये सुन मैना का दिल भर आया,
प्यार से तोते को गले लगाया,
बोली,-तुम-सा साथी पाकर,
मैंने ये जीवन सफल बनाया।
जन-जन में विश्वास जगाता,
देखो कैसा देश प्रेम का नाता॥

परिचय- ताराचंद वर्मा का निवास अलवर (राजस्थान) में है। साहित्यिक क्षेत्र में ‘डाबला’ उपनाम से प्रसिद्ध श्री वर्मा पेशे से शिक्षक हैं। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में कहानी,कविताएं एवं आलेख प्रकाशित हो चुके हैं। आप सतत लेखन में सक्रिय हैं।

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