सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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नहीं सतयुग है यह कलियुग है,
यहाँ सीता नहीं सुनीता है
मत समझो मैं चुप बैठूँगी,
चुन-चुन कर बदला मैं लूँगी।
जो अनुभव में है तप्त ताप,
निकलेगा वह अंगारा आप
जब दुर्गा काली बन ही गई,
तप कर मैं अब कुंदन जो हुई।
दीपक मैंने अब लिया हाथ,
करती हूँ दृढ़ संकल्प साथ
अब पाप घड़ा भर गया बहुत,
अब अन्त निकट बीता अतीत।
स्वर्णिम आभा तपता ये बदन,
कर बन्द नेत्र गर्वित ये बयन
यदि ठान लिया हममें बल है,
नहीं कोई कार्य असंभव है।
यह हाय! हाय! करना छोड़ो,
दम यदि तुममें लड़ना सीखो।
यदि आगे कदम बढ़ाएँगे,
ईश्वर भी साथ निभाएंगे॥