डॉ.सोना सिंह
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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प्रबंधन,पराक्रम,पूर्णता,प्रेम और परिवर्तन के द्योतक भगवान श्री कृष्ण इसीलिए पूर्णावतार कहे जाते हैं कि ज्ञान के साथ कौशल और चिंतन के साथ चालाकी कृष्ण की नीति रही है। सुदर्शन चक्र धारण किए हुए वे एक ऐसे मानव हैं,जिनका जीवन संघर्षमय रहा। पूतना को स्तनपान के साथ माता का दर्जा देना पड़ा,वहीं अपने प्राणों की रक्षा करने के लिए उसके प्राण भी हरने पड़े। यह एक प्रकार का विरोधाभास है जो सिर्फ कान्हा की युद्ध नीति में परिलक्षित होता है। ऐसे ही कालिया मर्दन के फन पर चढ़कर नाचने वाले पीताम्बरधारी ने उसे ही जीवनदान दिया कि,गरूड़ तुझे नहीं मार पाएगा। मथुरा जाते हुए कंस के भेजे हाथी से दो-दो हाथ करने वाले कान्हा की असली युद्ध नीति बड़े होने पर दिखाई दी।
अहिंसा के साथ योजनाबद्धता उनकी युद्ध शैली रही है। इंद्र के अभिमान को समाप्त करने के लिए गोवर्धन का सहारा लेना भी इसी का भाग रहा। मथुरा में कंस के वध के बाद जरासंघ और कालयवन को भी चालाकी से ही समाप्त किया। किस दुश्मन का किस प्रकार के शस्त्र से नाश करना,ये उन्हें बखूबी मालूम था। युद्ध नीति के ही अनुसार रूक्मिणी का हरण करने के बाद उनके भाई रूक्मि को छोड़ना,अर्थात दया का भाव भी रखना यह कृष्ण की ही युद्ध नीति थी। शिशुपाल के बहुत सारे अपराधों को क्षमा करने के बाद उसका सुदर्शन चक्र से वध करना भी उनकी विशिष्टता है,परंतु असली युद्ध नीति दिखाई दी महाभारत के समय,जब हाथ में शस्त्र न उठाने के संकल्प के साथ श्रीकृष्ण थे। युद्ध सिर्फ सेना के भरोसे नहीं, वरन जानकारियों के दम पर जीते जाते हैं,यह बात महाभारत में दिखाई देती है। कृष्ण ने पांडवों को अस्त्र-शस्त्र में निपुण करने के लिए गुरूकुल में भेजा,यह उनकी दूरदृष्टिता का भाग है। अपने-आपको सशक्त बनाने की नीति भी यही है कि जब जैसा समय हो,उस समय में वैसा व्यवहार कर अपनी रक्षा करने में हम सक्षम रहें। युद्ध नीति के अनुसार अर्जुन जब सेना के रूप में अपने रिश्तेदारों को देखकर घबराया,तब कृष्ण ने उसे युद्ध के लिए प्रवृत्त किया। उसे उसकी वीरता की अनुभूति कराई। उनकी युद्ध नीति के अनुसार अहिंसा,दया,सज्जनता,दानवीरता तथा अलिप्तता की भी अपनी सीमा है। इनकी अधिकता से भी युद्ध में हार का सामना करना पड़ सकता है। युद्ध के अपने नियम हैं। शत्रु से ही उसकी मृत्यु का पता पूछना और उसे वहाँ पहुंचाना भी कृष्ण का अपना कौशल है। यह जरासंघ,भीष्म पितामह,कर्ण, दुर्योधन के साथ दिखाई देता है। जयद्रथ के घमंड का चूर करना और युद्ध में द्रोणाचार्य के मनोबल को तोड़ने के लिए झूठी अफवाह भी इसी प्रकार की नीति है।
कृष्ण की अलौकिक और ज्ञान की युद्ध नीति के ऐसे कितने ही उदाहरण हैं। अभिमन्यु को चक्रव्यूह में मारना,सोते पांडवों को मारना जैसी अभ्रद नीति के बावजूद कृष्ण ने अर्जुन के साथ सभी सामान्य मानवों को जीवन जीने की नई कला सिखाई। गीता में उन्होंने किसे मारना है,किसे बचाना है,कौन क्षम्य है, कौन अक्षम्य है,नीति-अनीति,धर्म-अधर्म, प्रतिघात,योग्य-अयोग्य जैसे कितने जीवन दर्शनों का सामान्यीकरण किया है। इसीलिए, कृष्ण कोई ईश्वर नहीं,कोई मानव नहीं,कोई अवतार नहीं वरन् एक विचार है। यह संपूर्ण जीवन दर्शन है।
परिचय-डॉ.सोना सिंह का बसेरा मध्यप्रदेश के इंदौर में हैl संप्रति से आप देवी अहिल्या विश्वविद्यालय,इन्दौर के पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला में व्याख्याता के रूप में कार्यरत हैंl यहां की विभागाध्यक्ष डॉ.सिंह की रचनाओं का इंदौर से दिल्ली तक की पत्रिकाओं एवं दैनिक पत्रों में समय-समय पर आलेख,कविता तथा शोध पत्रों के रूप में प्रकाशन हो चुका है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के भारतेन्दु हरिशचंद्र राष्ट्रीय पुरस्कार से आप सम्मानित (पुस्तक-विकास संचार एवं अवधारणाएँ) हैं। आपने यूनीसेफ के लिए पुस्तक `जिंदगी जिंदाबाद` का सम्पादन भी किया है। व्यवहारिक और प्रायोगिक पत्रकारिता की पक्षधर,शोध निदेशक एवं व्यवहार कुशल डॉ.सिंह के ४० से अधिक शोध पत्रों का प्रकाशन,२०० समीक्षा आलेख तथा ५ पुस्तकों का लेखन-प्रकाशन हुआ है। जीवन की अनुभूतियों सहित प्रेम,सौंदर्य को देखना,उन सभी को पाठकों तक पहुंचाना और अपने स्तर पर साहित्य और भाषा की सेवा करना ही आपकी लेखनी का उद्देश्य है।