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फिर आओ इक बार यहाँ कान्हा

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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कृष्ण जन्माष्टमी स्पर्धा विशेष……….


हे जग तारी,कृष्ण मुरारी,
जन्मे मथुरा तुम,कंस के कारागार में।
पहुंचे ईश्वरीय लीला से तुम,
माता यशोदा के द्वार में।

हे देवकी नन्दन नंद-लाला,
तुम ही तो तारनहार हो।
खुद को माखन-चोर,चित-चोर बना के,
तुम्ही जग के राखनहर हो।

हे वासुदेव-देवकी नन्दन,
उफनती यमुना,रात अंधेरी
न नाव-न खेवईया,
कैसे तुमने पार की
कैसे तोड़ीं बेड़ियां भला तुमने,
कंस के कारागार की।

जरा बतलाओ तो हमको,
तुम अपनी लीला का हुनर
कैसे कारगार में तुमने हर प्रहरी को,
चिर-निद्रा की बौछार दी।

पहुंचे गोकुल तुम कैसे,
माता यशोदा को कान्हा उपहार दिया
गोकुल से तो सारे जग को ही तुमने,
ये ‘जन्माष्टमी’ त्योहार दिया।

हे जगदीश्वर,कृपा सिन्धु,दीन बन्धु,
सुदामा के बाल-बन्धु तुम
नन्द आभा मय उज्ज्वल इन्दु तुम,
माथे मयूर-पंख सजाये
गोपियों के हो मध्य बिन्दु तुम।

यशोदा माँ के नयनहारा हो,
तुमही छाँछ,माखन,और चितचोरा हो।
फिर आओ इक बार यहाँ कान्हा,
गोकुल-धाम अब करो धरा को॥

परिचय-हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।

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