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जब-जब हानि धर्म की होती

डॉ.साधना तोमर
बागपत(उत्तर प्रदेश)
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कृष्ण जन्माष्टमी स्पर्धा विशेष……….

जब-जब हानि धर्म की होती,मोहन मेरे आते हो,
धर्म-कर्म की परिभाषा को,गीता में समझाते हो।
भारतमाता तुम्हें पुकारे,
गिरधर मेरे तुम आओ।
मानव मन-सरवर में आ तुम,
प्रेम-जलज सरसा जाओ।
गुलशन सारा इन पुष्पों से,तुम ही तो महकाते हो,
जब-जब…ll

धरा अनूठी भारत भूमि,
अखण्ड संस्कृति का नारा।
प्रेम,दया,करुणा,ममता की,
पावन,शीतल जल-धारा।
मधुर-मधुर बंसी की धुन में,मृदु संगीत सुनाते हो,
जब-जब…ll

आज का मानव दानव बनकर,
नारी की अस्मत लूटे।
बेटी,बहना,माँ के रिश्ते,
सारे ही लगते झूठे।
पावन भावों की गंगा की,तुम बूंदें बरसाते हो,
जब-जब…ll

तमस-मार्ग में भटका राही,
ज्योति नव दरसा दो तुम।
बीन-बीन पथ के कंटक सब,
पुष्पों को बरसा दो तुम।
मानवता की शिक्षा सबको,तुम ही तो सिखलाते हो,
जब-जब हानि धर्म की होती,मोहन मेरे आते होll

परिचय-डॉ.साधना तोमर का साहित्यिक नाम-साधना है। २९ दिसम्बर १९६७ क़ो पन्तनगर (नैनीताल) में जन्मीं साधना तोमर वर्तमान में उत्तर प्रदेश स्थित बड़ौत (बागपत) में स्थाई रूप से बसी हुई हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली डॉ.तोमर ने एम.ए.(हिन्दी), एम.एड.,नेट,पी-एच.डी. सहित डी.लिट्.की शिक्षा हासिल की हुई है। आपका कार्यक्षेत्र-बागपत स्थित महाविद्यालय में सह प्राध्यापक (हिन्दी विभाग)का है। सामाजिक गतिविधि में आप राष्ट्रीय सेवा योजना प्रभारी होकर विविध साहित्यिक मंचों से जुड़ी हुई हैं।लेखन विधा-गीत,कविता,दोहा,लेख और लघुकथा आदि है। प्रकाशन में ३ पुस्तकें(एक सन्दर्भ पुस्तक-कवि शान्ति स्वरूप कुसुम:व्यक्तित्व एवं कृतित्व,जीवन है गीत-गीत संग्रह और साधना सतसई-दोहा संग्रह) सहित २९ शोध- पत्र आपके खाते में हैं। प्राप्त सम्मान- पुरस्कार में काव्य रचनाओं पर ३१ राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय सम्मान,पुरस्कार तथा उपाधि प्राप्त हैं। लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक विसंगतियों को दूर करने का प्रयास तथा मानवीय मूल्यों की स्थापना के साथ ही आध्यात्मिक चेतना का विकास करना है। पसन्दीदा हिन्दी लेखक-छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद और प्रेरणापुंज-गुरु डॉ.सुभाषचंद्र कालरा हैं। आपकी रचनाएँ विभिन्न समाचार-पत्रों और संग्रह में छपी हैं। जीवन लक्ष्य-अपनी रचनाओं के माध्यम से मानवीय मूल्यों का विकास करना है। देश के प्रति विचार-
“राष्ट्र-धर्म अब यही है कहता, 
दुश्मन को दिखला दें हम। 
अलग नहीं हम एक सभी है, 
सबक उसे सिखला दें हम।

हिन्दी हिन्द की आत्मा,
इस बिनु नहीं विकास। 
अस्मिता यह राष्ट्र की, 
जन-जन का विश्वास॥”

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