वाणी वर्मा कर्ण
मोरंग(बिराट नगर)
******************************
माना बीत रही है उम्र,
आँकड़े से हार जाऊं…
ये हो सकता नहीं।
माना दर्द बहुत है जीने में,
दवा से हार जाऊं…
ये हो सकता नहीं।
उम्मीदें हैं अभी भी अपनों से,
रिश्तों से हार जाऊं…
ये हो सकता नहीं।
बचपना अभी भी है बाकी,
बुढ़ापे से हार जाऊं…
ये हो सकता नहीं।
बहुत काम बाकी हैं अभी भी,
साँसों से हार जाऊं…
ये हो सकता नहीं।
चार पल का है जीवन,
समय से हार जाऊं…
ये हो सकता नहीं।
मन के जीते जीत है-मन के हारे हार,
कमबख्त मन से हार जाऊं…
ये हो सकता नहीं।
चलने का नाम है जिंदगी,
थक कर बैठ जाऊं…
ये हो सकता नहीं।
फूल ही फूल किसको मिला है,
काँटों से हार जाऊं…
ये हो सकता नहीं।
बदलता जीवन का स्वरूप है,
परिवर्तन से हार जाऊं…
ये हो सकता नहीं।
अंत से ही शुरुआत है,
प्रारब्ध से हार जाऊं…
ये हो सकता नहीं॥