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हालात वक्त से ही

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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मिले हालात बन के वक्त से ही,
दिए सुख-दुख सभी को वक्त ने ही।
यही आगाज ये अन्जाम सबका,
कदर मिलती नहीं पर वक्त को ही।
मिले हालात बन के…

सुखों में लोग इसको भूल जाते,
बने दुख तो बुरा इसको बताते।
गिला-शिकवा भला किसको लुभाता,
मिले रुसवाई तो ये रूठ जाता।
बुराई का सिला क्यों वक्त को ही,
कदर मिलती नहीं क्यों वक्त को ही।
मिले हालात बन के…

बने दिन-रात के पहलू इसी से,
उजाले या अंधेरे सब इसी के।
अगर कर्तव्य इसके मान लें तो,
इसी के पहलुओं से ज्ञान लें तो।
मिले सुख जिन्दगी को वक्त से ही,
कदर मिलती नहीं पर वक्त को ही।
मिले हालात बन के…

मिले हम-तुम नहीं पहले यहां क्यों,
कहीं खुशियां कहीं गम बन रहे क्यों।
ठहर कर क्यों खुशी ही रह न पाए,
नहींं कहता ‘चहल’ गम मिट ही जाए।
मगर इक आस होती वक्त से ही,
कदर मिलती नहीं पर वक्त को ही।
मिले हालात बन के…॥

परिचय-हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।

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