बबीता प्रजापति
झाँसी (उत्तरप्रदेश)
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देर तक सोना,
सुकूँ का होना।
न रोज़ क़ी भागम-भाग,
बस पंछियों का सु-राग।
माँ के हाथ की चाय,
और बस मज़ा आ जाय।
अपनों से मुलाक़ात,
और ढेर सारी बात ही बात।
खूब खिलखिलाना,
परिवार सँग वक़्त बिताना।
सच में… रविवार,
कितना अच्छा लगता है॥