संदीप धीमान
चमोली (उत्तराखंड)
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नारी और जीवन (अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस)….

राम की दुलारी
वो राम की ही प्यारी थी,
कभी बेटियाँ तो
कभी बहू हमारी थी।
गर्भ में जो मारी
वो बहुत ही न्यारी थी,
कभी माँ तो
कभी बहन हमारी थी।
बीमारी,बदहाली में
कष्टों की दुश्वारी में,
घर-आँगन की चौखट पे
उसकी ही पहरेदारी थी।
श्वाँसों को मोहताज जो
जन्म को आभार वो,
जन्म देने वाली भी
जन्म को लाचार वो।
जिस देह दिया जन्म
उस देह का पूजारी तू,
गर्भ में जो मारी
वो देह भी हमारी थी।
पौरुष के पुरुषत्व में
ब्रह्मांड के अस्तित्व में,
मारी आज तूने जो
उसकी भी हिस्सेदारी थी।
राम की दुलारी,
वो राम की ही प्यारी थी।
गर्भ में जो मारी,
उसी से दुनिया हमारी थी॥