बबीता प्रजापति ‘वाणी’
झाँसी (उत्तरप्रदेश)
******************************************
रुको जिंदगी,
ठहर जाने दो
तन्हा हूँ बहुत,
मेरे घर जाने दो।
माँ-बाबू जी,
यारों की यारियाँ
मिलकर करनी है,
दीवाली की तैयारियाँ
तुलसी के क्यारे में,
एक सांझ का दीप धर आने दो।
रुको जिंदगी…
अमरूद भी अब,
बागों में पक गए होंगे
ढाक पीपल के पत्ते,
राह तक रहे होंगे
पतझड़ के सुहाने मौसम हैं,
तनिक ये पत्ते भी झर जाने दो।
रुको ज़िंदगी,
ठहर जाने दो…॥