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रेडियो की जय हो…

डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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वाह रेडियो तुम फिर आ गए,
जादू बनकर घर-घर छा गए।

लोग तो तुमको भूल गए थे,
पर्दे पर टीवी के झूल गए थे।

भुला दी थी तुम्हारी आवाज,
गीतों के प्यार भरे अंदाज।

बिनाका की वो गीतमाला,
हवामहल का था बोलबाला।

देश दुनिया के वो हाल-चाल,
उद्घोषकों के स्वर के कमाल।

स्वास्थ्य की अनमोल बातें,
आपकी फरमाइश की रातें।

चर्चा खेती-किसानी की,
कहानी परी राजा-रानी की।

कभी बातें रोजी-रोटी की,
तो कभी बातें बेटे-बेटी की।

फिल्में तो हो गयीं अश्लील,
वो संस्कारों को गयी हैं लील।

सिगरेट धुंआ अफीम शराब,
कितनी पीढ़ियां हुईं खराब।

तू ही सबका सच्चा मित्र,
जैसे हवा में खुशबूदार इत्र।

नहीं हुआ कम तेरा दमखम,
बदली फिजाएं बदले मौसम।

तू तो है जन-जन की वाणी,
सदा अमर रहे आकाशवाणी॥

परिचय– डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी ने एम.एस-सी. सहित डी.एस-सी. एवं पी-एच.डी. की उपाधि हासिल की है। आपकी जन्म तारीख २५ अक्टूबर १९५८ है। अनेक वैज्ञानिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित डॉ. बाजपेयी का स्थाई बसेरा जबलपुर (मप्र) में बसेरा है। आपको हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-शासकीय विज्ञान महाविद्यालय (जबलपुर) में नौकरी (प्राध्यापक) है। इनकी लेखन विधा-काव्य और आलेख है।

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