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लहर-लहर लहराए

डॉ. सुभाष शर्मा
मेलबर्न(ऑस्ट्रेलिया)
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आजादी का अमृत छलके,
जी मेरा हरसाए।
मेरा तिरंगा मन में मेरे,
लहर-लहर लहराए॥

कफ़न बाँध कर निकल गए,
थे बालक जो अभिमानी
झूल गए फाँसी के फंदे
बन गए वह बलिदानी।
जब-जब देखूँ केसरिया तब,
रोम रोम पुलकाए
मेरा तिरंगा मन में मेरे,
लहर-लहर लहराए॥

तोता मैना हरे-हरे,
जब चहकें चारों ओर।
खेतों में जब मोर नाचें,
तब शोर मचे हर ओर॥
जब-जब देखूँ हरा रंग,
तो जियरा यह हर्षाए।
मेरा तिरंगा मन में मेरे,
लहर-लहर लहराए॥

विश्व शांति का ले संदेशा,
श्वेत रंग फहराए।
प्रति पल प्रति क्षण का रहस्य,
यह काल चक्र दर्शाए॥
दूर देश में अपना झंडा,
एक झलक दिख जाए।
मेरा तिरंगा मन में मेरे,
लहर-लहर लहराए॥

आज़ादी का पर्व आज है,
खुशी है मन में छाई।
आज शहीदों की कुर्बानी,
याद हमें फिर आई॥
उड़े तिरंगा जब-जब ऊँचा,
मन मेरा इठलाए।
मेरा तिरंगा मन में मेरे,
लहर-लहर लहराए॥

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुम्बई)

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