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प्राथमिक शिक्षा में `मातृभाषा` माध्यम न रखा,तो ईश्वर भी भारतीय भाषाओं को नहीं बचा सकेगा

भारतीय भाषाओं की साझा चुनौतियों पर ‘वैश्विक भारतीय भाषा परिसंवाद………..

मुंबई(महाराष्ट्र)l

यदि प्राथमिक शिक्षा में भी मातृभाषा माध्यम न रखा गया,तो ईश्वर भी भारतीय भाषाओं को नहीं बचा सकेगा। अलग-अलग भाषाओं की अलग-अलग संगोष्ठियाँ करने के बजाए हमें मिलकर अपनी भाषाओं को बचाना होगा।

ये विचार वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव ने वैश्विक हिंदी सम्मेलन तथा सम्यक न्यास द्वारा वस्तु एवं सेवा कर आयुक्तालय मुंबई(मध्य)के सहयोग से जीएसटी भवन(चर्चगेट,मुंबई) में आयोजित ‘वैश्विक भारतीय भाषा परिसंवाद’ में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि हम एक हारी हुई लड़ाई लड़ रहे हैं। अलग-अलग भाषाओं की अलग-अलग संगोष्ठियाँ करने के बजाए हमें मिलकर अपनी भाषाओं को बचाना होगा। यदि ऐसा न किया तो हमारे पास बचाने के लिए कुछ नहीं होगा।

भारतीय भाषाओं की साझा चुनौतियों को लेकर आयोजित अपनी तरह के इस विशेष परिसंवाद में मराठी,गुजराती मलयालम,असमिया,बांग्ला,पंजाबी,उड़िया,कच्छी,सिंधी तथा हिंदी सहित विभिन्न भाषाओं के प्रतिनिधियों ने भारतीय भाषाओं को बचाने और आगे बढ़ाने के लिए मिलकर प्रयास किए जाने की आवश्यकता पर जोर दिया। मुख्य अतिथि के रुप में उपस्थित मुख्य आयुक्त(वस्तु एवं सेवा कर)श्रीमती संगीता शर्मा ने कहा कि,आज हम सभी के सामने अपनी भाषाओं को बचाना एक बहुत बड़ी चुनौती है और इसके लिए वैश्विक हिंदी सम्मेलन द्वारा किया गया यह प्रयास अत्यंत सराहनीय है।

पुणे से आए गणित शिक्षक अनिल गोरे उर्फ मराठी काका ने बताया कि वे करीब सवा तीन लाख अंग्रेजी माध्यम के विद्यार्थियों को मराठी माध्यम में ला चुके हैं और उनके करीब ३०० विद्यार्थी आई.आई.टी. तक पहुंचे हैं। उन्होंने कहा कि मैंने ऐसे 22 भेद ढूंढे हैं,जिनके कारण अंग्रेजी भाषा में पढ़ने वाले विद्यार्थी से मातृभाषा में पढ़ने वाला विद्यार्थी बहुत अधिक सीख सकता है।

महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी की कार्याध्यक्ष डॉ. शीतला प्रसाद दुबे ने कहा कि,नई शिक्षा नीति को अपने प्रदेशों में लागू करवाने के प्रयास किए जाने चाहिए, जिसमें प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने की बात कही गई है। उन्होंने बताया कि उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय एवं एस.एन.डी.टी. विश्वविद्यालय में कला संकाय से संबंधित कई विषयों के प्रश्न-पत्रों के उत्तर मराठी,गुजराती,हिंदी आदि में देने के भी प्रावधान करवाए हैं।

हिंदी माध्यम से शिक्षा प्राप्त व भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा उत्तीर्ण कर प्रावीण्य में आने वाली अपर आयुक्त(वस्तु एवं सेवा कर)श्रीमती प्रीति चौधरी ने कहा कि भारतीय सिविल सेवा की परीक्षाओं में हिंदी व भारतीय भाषाओं के प्रश्न-पत्रों की भाषा इतनी कठिन होती है कि,उस भाषा के माध्यम से परीक्षा देने वाले भी उसे समझ नहीं सकते। यह भाषा सरल व सहज होनी चाहिएl

संगोष्ठी का संचालन करते हुए वैश्विक हिंदी सम्मेलन के निदेशक डॉ. मोतीलाल गुप्ता ‘आदित्य’ ने कहा कि भारतीय भाषाओं को रोजी-रोटी से न जोड़ा गया तो हम चाह कर भी अपने बच्चों को अपनी भाषा में पढ़ा नहीं सकेंगे। उन्होंने बताया कि स्वतंत्रता के समय देश के लगभग ९९ प्रतिशत बच्चे मातृभाषा में पढ़ते थे,लेकिन भारतीय भाषाओं के माध्यम से रोजगार न मिल पाने के कारण अब अंग्रेजी माध्यम के अधकचरे विद्यालय छोटे-छोटे गांवों तक पहुंच गए हैं।

परिसंवाद में एस.एन.डी.टी. विश्वविद्यालय की पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष एवं निदेशक प्रो. माधुरी छेड़ा ने कच्छी भाषा के प्रचार-प्रसार व प्रयोग हेतु किए जा रहे प्रयासों की जानकारी देते हुए सभी भारतीय भाषाओं में ऐसे प्रयास किए जाने की बात कही।

सीएनबीसी आवाज चैनल के प्रमुख आलोक जोशी ने मीडिया और व्यवसाय में जनभाषा के महत्व को स्वीकार करते हुए जानकारी दीl

असम एसोसिएशन से अपारूप बोरपुजारी ने भारतीय भाषाओं के प्रयोग को बढ़ाने के लिए उनके स्तर को बढ़ाने की बात कही और कहा कि,इसके लिए मिलकर प्रयास करने होंगेl एसोसिएशन के एक अन्य प्रतिनिधि शिव सोनी ने भी इसका समर्थन किया।

फिल्म निर्माता एवं सिंधी समाज के प्रतिनिधि टीकम मनमानी ने कहा कि,विभाजन के पश्चात सिंध प्रांत के पाकिस्तान में चले जाने के बाद भारत में हिंदी भाषा के विकास व प्रसार का मार्ग अवरुद्ध हुआ है,इसलिए इस दिशा में विशेष प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। इस संबंध में प्रो. शीतला प्रसाद दुबे ने कहा कि वे सिंधी शिक्षण संस्थान में पढ़ाते रहे हैंl उन्होंने वहां सिंधी भाषा को देवनागरी लिपि में लिखकर आगे बढ़ाने के लिए विशेष प्रयास किए हैंl

कवियित्री एवं अधिवक्ता श्रीमती चित्रा देसाई ने कहा कि सरकार द्वारा केन्द्रीय हिंदी समिति के बजाए ‘ केन्द्रीय भारतीय भाषा समिति’ का गठन किया जाना चाहिए,जिसके माध्यम से हिंदी के साथ-साथ अन्य भारतीय भाषाओं के संबंध में निर्णय लिए जा सकें।

भाषा प्रौद्योगिकीविद् अनिर्बाण बिस्वास ने कहा कि सभी भारतीय भाषाओं के लिए समान भाषा प्रौद्योगिकी होने के कारण इसके माध्यम से इन्हें साथ लेकर आगे बढ़ा जा सकता है। उन्होंने कहा यदि हमने भाषा प्रौद्योगिकी को नहीं अपनाया तो,भारतीय भाषाएं बहुत ही पीछे छूट जाएँगी।

बैंक ऑफ बड़ौदा के पूर्व महाप्रबंधक एवं भाषा-सेवी जवाहर कर्णावट ने कहा कि भारतीय भाषाओं में कार्य करने के लिए वर्तमान में पर्याप्त प्रौद्योगिकी उपलब्ध है,लेकिन ज्यादातर देशवासियों को इसकी जानकारी नहीं है। यह आवश्यक है कि,उन सुविधाओं का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाए। इसके लिए विद्यालयों के पाठ्यक्रम में इसे अनिवार्य किया जाना चाहिए।

उर्दू भाषी सुप्रसिद्ध रेडियो जॉकी यूनुस खान ने डॉ. कर्णावट की बात से सहमति जताते हुए बताया कि वे स्वयं व्यक्तिगत स्तर पर निरंतर लोगों को भारतीय भाषाओं के लिए उपलब्ध प्रौद्योगिकी की जानकारी दे रहे हैं,लेकिन इस दिशा में अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है।

गुजराती भाषा के प्रतिनिधि के रूप में उपस्थित भावेश मेहता सहित उड़िया भाषी श्रीमती लता तेजेस्वर रेणुका ने भी अपनी बार रखीl

सम्मेलन के सदस्य एवं अधिवक्ता कृष्ण मोहन मिश्र,एक्जिम बैंक के उप महाप्रबंधक नवेंदु वाजपेयी,बैंक ऑफ बड़ौदा के सहायक महाप्रबंधक संजय सिंह,मलयाली भाषी अनुवादक श्रीमती मीरा वी. राजीव,श्रीमती मंजूश्री डहाले सहित अनेक भाषा-सेवी यहाँ उपस्थित थे।

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन,मुंबई)

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