सुनीता रावत
अजमेर(राजस्थान)
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लोकतंत्र का कत्ल आज़
हर चौराहे पर हो रहा,
जनता की भावनाओं से आज़
हर नेता है खेल रहा
मंदिर-मस्ज़िद के नामों पर
जनता को है लुभा रहा,
जाति-धर्म की राजनीति से
जीत सुनिश्चित कर रहा
लोगों की नब्ज़ टटोलकर
नित सपने नए दिखा रहा,
आश्वासन पर आश्वासन देकर
लोंगों को भरमा रहा।
भेड़ समान जनता बेचारी
का इन पर जो भरोसा रहा,
पलक झपकते ही ज़मीन
पैरों नीचे से खिसक गई
निरीह भेड़-सी जनता का
जिन भेड़ियों पर विश्वास रहा,
आते चुनाव जो हाथ जोड़कर
सम्मुख ही अड़ा रहा
झांसे में आकर भेड़ों ने
भेड़ियों को मसीहा समझ लिया,
सहमति से बहुमत देकर
उसको विजयी बना दिया
जीत के बाद भेड़िए ने पहले
भेड़ों पर क्या अहसान किया ?
जीत का ज़श्न मनाने खातिर
भेड़ों का गोश्त ही मांग लिया,
हाहा-कार मचा भेड़ों में
कि शैतानों को ही सम्मान दिया
सदाचार का पहले चोला
भेड़ियों ने उतार दिया,
गिरगिट की तरह रंग वो बदल
अपना तेवर दिखा दिया
भेड़िया शुभचिंतक नहीं होगा
अपनी पहचान को बता दिया,
त्राहि-त्राहि मच गई प्रजा में
भेड़ियों ने नंगा नाच किया,
चोरी-चमारी-छेड़खानी ही नहीं
विश्वास का सीधे बलात्कार किया
नाबालिग अबलाओं के संग
भेडियों ने दुराचार किया।
हाय! कैसी ये विडंबना!
भक्षक को रक्षक बना दिया,
हमने ही अपनी अस्मिता को
नादिरों के हाथों सौंप दिया
जीने की आज़ादी को हमने
दुश्मन के हाथों कैद किया,
राणा प्रताप के वंशज हैं हम
फिर भी हमने भूल की
अपने स्वाभिमान को हमने
भेड़ियों के सुपुर्द किया,
भेड़ियों ने ही लोकतंत्र की
हत्या को अंज़ाम दिया
लोकतंत्र की गरिमा को
अब तो है हमें बचाना।
अबके जो चुनाव होगा तो
भेड़ियों को है सबक सिखाना,
लोकतंत्र की हत्या करने वाले को
है उनकी औक़ात बताना॥