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विवेक की देवी हैं माँ सरस्वती

प्रो.डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला(मध्यप्रदेश)

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बसंत पंचमी विशेष….

‘अक्षर का तूने सार दिया,मातु शारदे।
सच्चाई का संसार दिया,मातु शारदे।
मैं खोया था अविवेक के अँधियार में मगर,
उजियार का उपहार दिया मातु शारदे॥’

सरस्वती को वागीश्वरी,भगवती,शारदा और वीणा वादिनी सहित अनेक नामों से संबोधित जाता है। ये सभी प्रकार के ब्रह्म विद्या-बुद्धि एवं वाक् प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की अधिष्ठात्री देवी भी हैं। ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है कि,प्रणो देवी सरस्वती परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में वे हमारी बुद्धि,प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार-मेधा है,उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है। कई पुराणों के अनुसार नित्य गोलोक निवासी श्रीकृष्ण भगवान ने सरस्वती से प्रसन्न होकर कहा कि उनकी बसंत पंचमी के दिन विशेष आराधना करने वालों को ज्ञान विद्या कला में चरम उत्कर्ष प्राप्त होगा। इस सत्य के फलस्वरूप भारत में वसंत पंचमी के दिन ब्रह्मविद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की पूजा की परम्परा आज तक जारी है।
सरस्वती को साहित्य,संगीत,कला की देवी माना जाता है। उसमें विचारणा,भावना एवं संवेदना का त्रिविध समन्वय है। वीणा संगीत की,पुस्तक विचारणा की,वे हंस-वाहन कला की अभिव्यक्ति हैं। लोक चर्चा में सरस्वती को शिक्षा की देवी माना गया है। शिक्षा संस्थाओं में वसंत पंचमी को सरस्वती का जन्म दिन समारोह पूर्वक मनाया जाता है। पशु को मनुष्य बनाने का,अंधे को नेत्र मिल जाने का श्रेय शिक्षा को दिया जाता है। मनन से मनुष्य बनता है। मनन बुद्धि का विषय है। भौतिक प्रगति का श्रेय बुद्धि-वर्चस् को दिया जाना और उसे सरस्वती का अनुग्रह माना जाना उचित भी है। इस उपलब्धि के बिना मनुष्य को नर-वानरों की तरह वनमानुष जैसा जीवन बिताना पड़ता है। शिक्षा की गरिमा-बौद्धिक विकास की आवश्यकता जन-जन को समझाने के लिए सरस्वती अर्चना की परम्परा है। इसे प्रकारान्तर से गायत्री महाशक्ति के अंतगर्त बुद्धि पक्ष की आराधना कहना चाहिए।
सरस्वती के १ मुख,४ हाथ हैं। मुस्कान से उल्लास, २ हाथों में वीणा-भाव संचार एवं कलात्मकता की प्रतीक है। पुस्तक से ज्ञान और माला से ईशनिष्ठा-सात्त्विकता का बोध होता है। भारत में किसी भी शैक्षणिक कार्य के पहले इनकी पूजा की जाती है।
कहते हैं कि महाकवि कालिदास,वरदराजाचार्य, वोपदेव आदि मंद बुद्धि के लोग सरस्वती उपासना के सहारे उच्च कोटि के विद्वान् बने थे। इसका सामान्य तात्पर्य तो इतना ही है कि ये लोग अधिक मनोयोग एवं उत्साह के साथ अध्ययन में रुचिपूर्वक संलग्न हो गए और अनुत्साह की मनःस्थिति में प्रसुप्त पड़े रहने वाली मस्तिष्कीय क्षमता को सुविकसित करने में सफल हुए होंगे। इसका एक रहस्य यह भी हो सकता है कि कारणवश दुर्बलता की स्थिति में रह रहे बुद्धि-संस्थान को सजग-सक्षम बनाने के लिए वे उपाय-उपचार किए गए,जिन्हें ‘सरस्वती आराधना’ कहा जाता है। उपासना की प्रक्रिया भाव-विज्ञान का महत्वपूर्ण अंग है। मनःशास्त्र के रहस्यों को जानने वाले स्वीकार करते हैं कि व्यायाम,अध्ययन,कला,अभ्यास की तरह साधना भी एक समर्थ प्रक्रिया है,जो चेतना क्षेत्र की अनेक रहस्यमयी क्षमताओं को उभारने तथा बढ़ाने में पूर्णतः समर्थ है। सरस्वती उपासना के संबंध में भी यही बात है। उसे शास्त्रीय विधि से किया जाए तो वह अन्य मानसिक उपचारों की तुलना में बौद्धिक क्षमता विकसित करने में कम नहीं,अधिक ही सफल होती है।
मन्दबुद्धि लोगों के लिए गायत्री महाशक्ति का सरस्वती तत्व अधिक हितकर सिद्घ होता है। बौद्धिक क्षमता विकसित करने,चित्त की चंचलता एवं अस्वस्थता दूर करने के लिए सरस्वती साधना की विशेष उपयोगिता है। कल्पना शक्ति की कमी, समय पर उचित निर्णय न कर सकना,विस्मृति, प्रमाद,दीर्घ सूत्रता,अरुचि जैसे कारणों से भी मनुष्य मानसिक दृष्टि से असमर्थ जैसा बना रहता है और मूर्ख कहलाता है। उस अभाव को दूर करने के लिए सरस्वती साधना उपयोगी आध्यात्मिक उपचार है।
शिक्षा के प्रति जन-जन के मन-मन में अधिक उत्साह भरने-लौकिक अध्ययन और आत्मिक स्वाध्याय की उपयोगिता अधिक गम्भीरता पूर्वक समझने के लिए भी सरस्वती पूजन की परम्परा है। बुद्धिमत्ता को बहुमूल्य सम्पदा समझा जाए और उसके लिए धन कमाने,बल बढ़ाने,साधन जुटाने, मोद मनाने से भी अधिक ध्यान दिया जाता है। हम सब यही कामना करते हैं कि,ज्ञान की देवी,विद्या-बुद्धि व विवेक की अधिष्ठात्री माँ सरस्वती हमारी चेतना को सद्गुणों से परिपूर्ण कर जीवन सफल बनाएं।

परिचय–प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे का वर्तमान बसेरा मंडला(मप्र) में है,जबकि स्थायी निवास ज़िला-अशोक नगर में हैL आपका जन्म १९६१ में २५ सितम्बर को ग्राम प्राणपुर(चन्देरी,ज़िला-अशोक नगर, मप्र)में हुआ हैL एम.ए.(इतिहास,प्रावीण्यताधारी), एल-एल.बी सहित पी-एच.डी.(इतिहास)तक शिक्षित डॉ. खरे शासकीय सेवा (प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष)में हैंL करीब चार दशकों में देश के पांच सौ से अधिक प्रकाशनों व विशेषांकों में दस हज़ार से अधिक रचनाएं प्रकाशित हुई हैंL गद्य-पद्य में कुल १७ कृतियां आपके खाते में हैंL साहित्यिक गतिविधि देखें तो आपकी रचनाओं का रेडियो(३८ बार), भोपाल दूरदर्शन (६ बार)सहित कई टी.वी. चैनल से प्रसारण हुआ है। ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं(विशेषांकों)का सम्पादन कर चुके डॉ. खरे सुपरिचित मंचीय हास्य-व्यंग्य  कवि तथा संयोजक,संचालक के साथ ही शोध निदेशक,विषय विशेषज्ञ और कई महाविद्यालयों में अध्ययन मंडल के सदस्य रहे हैं। आप एम.ए. की पुस्तकों के लेखक के साथ ही १२५ से अधिक कृतियों में प्राक्कथन -भूमिका का लेखन तथा २५० से अधिक कृतियों की समीक्षा का लेखन कर चुके हैंL  राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में १५० से अधिक शोध पत्रों की प्रस्तुति एवं सम्मेलनों-समारोहों में ३०० से ज्यादा व्याख्यान आदि भी आपके नाम है। सम्मान-अलंकरण-प्रशस्ति पत्र के निमित्त लगभग सभी राज्यों में ६०० से अधिक सारस्वत सम्मान-अवार्ड-अभिनंदन आपकी उपलब्धि है,जिसमें प्रमुख म.प्र. साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार(निबंध-५१० ००)है।

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