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विश्व शांति के प्रबल पक्षधर रहे गुरुदेव

नमिता घोष
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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इस महान देशभक्त का निधन ७ अगस्त १८४१ को हो गया। वे विश्व शांति तथा विश्व एकता के प्रबल पक्षधर थे। गुरुदेव महान दार्शनिक,रहस्यवादी तथा मानवतावादी थे। जीवन के अंतिम समय में उन्होंने लिखा था,-भाग्य चक्र के परिवर्तन से १ दिन अंग्रेजों को भारत छोड़कर जाना ही होगा,किंतु वह किस भारत को कितनी दयनीय स्थिति में छोड़ जाएंगे, गंदगी अपने पीछे छोड़ जाएंगे ?
गुरुदेव देश के नागरिकों की शांति,आजादी और खुशहाली के सदैव पक्षधर रहे। रविंद्रनाथ टैगोर की उक्त पदावली की प्रसिद्ध पंक्तियां है-‘ताप विमोचन करुण.. मृत्यु अमृत करें दान’ अर्थात यहां मृत्यु तथा उपास्य से दोनों एक ही रूप में दिख रहे हैं कोई भेद नहीं है। मृत्यु में उस विराट असीम की उपलब्धि हो रही है जो अमृत ब्रह्म है और जो ताप विमोचन कर रहे,उनको भी है।
इस कवि को अपने दीर्घ जीवन में बहुत बार मर्म भेदी पीड़ा भोगनी पड़ी है। संतान का बिछोह,पत्नी का वियोग,बंधुओं का वियोग एवं विरोधियों द्वारा विद्रूप तथा अपमान आदि बार-बार उन्हें भोगना पड़ा,किंतु विशाल रविंद्र साहित्य में उनकी व्यक्तिगत पीड़ा को कोई स्थान नहीं मिला है। वह सर्वत्र पर दु:ख कातर रूप में अन्याय का विरोध करते तथा पीड़ितों के आँसू ही देखते हैं। उपनिषदों के अध्ययन,गंभीर आत्मचिंतन तथा दीर्घ जीवन व्यापी तप ने कवि के मन का भिन्न रीति से निर्माण किया और सुख-दु:ख,जीवन-मरण आदि के संबंध में उनकी धारणा ऋषियों की भांति भिन्न हो ही गई। रविंद्र नाथ के जीवन तथा साहित्य में दु:ख का एक विशिष्ट स्थान है,जिसने उनकी भावनाओं में तीव्रता दी तथा मृत्यु के इस प्रकृति स्वरूप को उपलब्ध कराया।
कवि के व्यक्तिगत संबंध में विशाल रविंद्र साहित्य भले ही मौन है,कलाकार के तीव्र किंतु सिद्ध प्रकाश में उनका व्यक्तिगत दु:ख-सुख भले ही छिपा रह जाएगा,परंतु रविंद्र साहित्यकार मत उस दु:ख तत्व छिपा नहीं रह सकता यही कारण है कि रविंद्र ने सृष्टि कर्ता की कला के मूल में दु:ख ही माना है। अविरल हो जाना ही सुख का आभास है,किंतु आनंद भिन्न वस्तु है। दुख का यह कल्याणकारी रूप नैवेद्य,गीतांजलि,गीति माल्य में स्पष्ट हुआ है, कवि ने मानव को क्षुद्र नहीं माना है परंतु उसकी क्षमता अवश्य अल्प कही है। मनुष्य को ईश्वर ने असहाय-भिक्षुक नहीं बनाया है। दु:ख ही साधक का एकमात्र साधन है,संबल है। अहंकार में मकड़ी जैसे जाल बनाकर अपने-आप फंस जाती है,उसी प्रकार मानव अपने अहंकार द्वारा निर्मित पाश में वध होकर नाना प्रकार से उत्पीड़न भोगता है। यह पीड़ा ही क्यों न प्रभु के चरणों में चढ़ा दी जाए, कवि का उसकी अपनी अध्यात्म साधना का शुभ परिणाम है। दु:ख विषयक कवि के ज्ञान तथा विश्वास के मूल में यद्यपि उनकी व्यक्तिगत पीड़ा निहित है,तथापि विश्वव्यापी उत्पीड़न ने कवि के मर्म को बारम्बार अभिभूत किया है। वह तो ‘तुच्छ करी नहीं दु:ख शोक’ विश्व प्रेम के गंभीर भाव में पवित्र हो चुके थे। अतः उनके साहित्य में दु:ख कातरता ही दिखती है।

परिचय-नमिता घोष की शैक्षणिक योग्यता एम.ए.(अर्थशास्त्र),विशारद (संस्कृत)व बी.एड. है। २५ अगस्त को संसार में आई श्रीमती घोष की उपलब्धि सुदीर्घ समय से शिक्षकीय कार्य(शिक्षा विभाग)के साथ सामाजिक दायित्वों एवं लेखन कार्य में अपने को नियोजित करना है। इनकी कविताएं-लेख सतत प्रकाशित होते रहते हैं। बंगला,हिन्दी एवं अंग्रेजी भाषा में भी प्रकाशित काव्य संकलन (आकाश मेरा लक्ष्य घर मेरा सत्य)काफी प्रशंसित रहे हैं। इसके लिए आपको विशेष सम्मान से सम्मानित किया गया,जबकि उल्लेखनीय सम्मान अकादमी अवार्ड (पश्चिम बंगाल),छत्तीसगढ़ बंगला अकादमी, मध्यप्रदेश बंगला अकादमी एवं अखिल भारतीय नाट्य उतसव में श्रेष्ठ अभिनय के लिए है। काव्य लेखन पर अनेक बार श्रेष्ठ सम्मान मिला है। कई सामाजिक साहित्यिक एवं संस्था के महत्वपूर्ण पद पर कार्यरत नमिता घोष ‘राष्ट्र प्रेरणा अवार्ड- २०२०’ से भी विभूषित हुई हैं।

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