सरफ़राज़ हुसैन ‘फ़राज़’
मुरादाबाद (उत्तरप्रदेश)
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देखा ‘क़रीब मुझको तो शरमाए देर तक।
शरमा ‘के मन ही मन में वो मुस्काए देर तक।
उसने निगाह फेर ली क्या जाने किसलिए,
आँखों ‘ने मेरी अश्क ‘यूँ छलकाए देर तक।
अँगड़ाई ‘ले रहे थे वो ‘शीशे के सामने,
आया ‘मिरा ख़याल तो लज्जाए देर तक।
मत पूछ मैंने कैसे गुज़ारी वो शामे ग़म,
जब’ दिल दुखा ‘के मेरा वो इतराए देर तक।
पहले तो कह रहे थे के तन्हा रहेंगे हम,
फिर’ दूर जा’ के मुझसे वो झुँझलाए देर तक।
यह’और बात ‘है के वो ज़ाहिर न कर सके,
पर’ घर जला के मेरा वो पछताए देर तक।
मौसम ‘ह़सीन लगने लगा हमको ऐ ‘फ़राज़’,
शानों पे उसने बाल जो लहराए देर तक॥