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शब्दों का करना उपयोग जरा सम्भाल कर

वंदना जैन
मुम्बई(महाराष्ट्र)
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शब्द उड़ कर खो न जाएं,
जेबों में रखिएगा संभाल कर
अदाएं हैं इनकी निराली,
अदाओं से रहिएगा बच कर।

कभी चीखते हैं क्रोध से,
कभी घावों की टीस बनते हैं
ये बहने न लगे रिस-रिस कर,
रखिएगा इन्हें संभाल कर।

कभी प्रेम-श्रृंगार का रसपान कराते,
कभी विरह के अश्रु पिलाते
प्रियतम संग मदमस्त हो जाते,
शब्दों को रखियेगा संभाल कर।

कभी बन कर वायु तरंगें,
अपने प्रेमी का मार्ग बताएंगे
कभी वीर बनकर वार करेंगे,
उस रस को भी रखिएगा संभाल कर।

बहुत दीवारें हिला चुके हैं,
कुछ की बुनियादें भी हिलाएंगे
टिकी रहे तूफानों में भी,ऐसी ईमारत अपनी भी
आप रखिएगा संभाल कर।

नकाबों के पर्दे हैं हर तरफ,
आँखों से पहचान हुई मुश्किल।
भाव-भंगिमा,सुर-स्वरों से बेनकाब करने का हुनर
अंदर रखिएगा संभाल कर॥

परिचय-वंदना जैन की जन्म तारीख ३० जून और जन्म स्थान अजमेर(राजस्थान)है। वर्तमान में जिला ठाणे (मुंबई,महाराष्ट्र)में स्थाई बसेरा है। हिंदी,अंग्रेजी,मराठी तथा राजस्थानी भाषा का भी ज्ञान रखने वाली वंदना जैन की शिक्षा द्वि एम.ए. (राजनीति विज्ञान और लोक प्रशासन)है। कार्यक्षेत्र में शिक्षक होकर सामाजिक गतिविधि बतौर सामाजिक मीडिया पर सक्रिय रहती हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,गीत व लेख है। काव्य संग्रह ‘कलम वंदन’ प्रकाशित हुआ है तो कई पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित होना जारी है। पुनीत साहित्य भास्कर सम्मान और पुनीत शब्द सुमन सम्मान से सम्मानित वंदना जैन ब्लॉग पर भी अपनी बात रखती हैं। इनकी उपलब्धि-संग्रह ‘कलम वंदन’ है तो लेखनी का उद्देश्य-साहित्य सेवा वआत्म संतुष्टि है। आपके पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नागार्जुन व प्रेरणापुंज कुमार विश्वास हैं। इनकी विशेषज्ञता-श्रृंगार व सामाजिक विषय पर लेखन की है। जीवन लक्ष्य-साहित्य के क्षेत्र में उत्तम स्थान प्राप्त करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-‘मुझे अपने देश और हिंदी भाषा पर अत्यधिक गर्व है।’

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