एम.एल. नत्थानी
रायपुर(छत्तीसगढ़)
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मिट्टी का गीलापन जड़ों,
को पकड़ कर रखता है
शब्दों का मीठापन रिश्तों,
को जकड़ कर रखता है।
सूनसान पगडंडियों-सी,
जिंदगी को संभालना है
सूखे दरख़्तों की कुंठाएं,
प्रेमबेल से ही संवारना है।
रिश्तों के ताने-बाने में ही,
जिंदगी उलझती रहती है
नासमझी के आवरण में,
ही यह बिखरती रहती है।
मन के शुद्ध आबो-हवा में,
ही रिश्ते मुखरित होते हैं
ढूंढ डाली के सूखे पत्तों,
में स्नेह अंकुरित होते हैं।
रिश्तों की कड़वाहट को,
स्नेह सुधा से भुलाना है।
हृदयतल के मधुबन को,
प्रेमबेल से ही सजाना है॥