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शुभ्रकमल सिंहासना

दुर्गेश कुमार मेघवाल ‘डी.कुमार ‘अजस्र’
बूंदी (राजस्थान)
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तू स्वर की देवी, माँ वीणापाणि,
शुभ्रकमल सिंहासना।
ममतामयी मूरत, बुद्धि की सूरत,
प्रेम पूरण प्रति प्रेरणा।
‘अजस्र’ तेरे चरणों में बैठा,
कर जोड़े, करता माँ वंदना,
ये वंदना, ये वंदना।
तू स्वर की देवी…

ब्रह्मतनया तू, हंसवाहिनी,
वेदमुखी तू सृजन कर।
सात सुरों की तू स्वर-सरिता,
वीणा में तेरे संगीत प्रखर।
‘अजस्र’ ज्ञान है मूढ़ बेसुर में,
वीणा तारों को झनकारना
झनकारना, झनकारना।
तू स्वर की देवी, माँ वीणापाणि,
शुभ्रकमल सिंहासना।

ममतामयी मूरत, बुद्धि की सूरत,
प्रेम पूरण प्रति प्रेरणा।
‘अजस्र’ तेरे चरणों में बैठा,
कर जोड़े, करता माँ वंदना,
ये वंदना ये वंदना।
तू स्वर की देवी …..

तम रूपी जग में अज्ञान प्रसारित,
ओझल सृष्टि उसमें जाती मही।
सूखी मसि, कलम अवरुद्ध हो,
वाणी जाए ना अब तो कही।
ज्ञान प्रवाह तेरा हो जन-जन में,
जगत विद्व हो सभी मना
सभी मना, सभी मना।
तू स्वर की देवी, माँ वीणापाणि,
शुभ्रकमल सिंहासना।

ममतामयी मूरत, बुद्धि की सूरत,
प्रेम पूरण प्रति प्रेरणा।
‘अजस्र’ तेरे चरणों में बैठा,
कर जोड़े, करता माँ वंदना
ये वंदना, ये वंदना।
तू स्वर की देवी…

कल-कल झरने, उड़ते पंछी,
बहती हवा संसार में।
चिड़िया चूं चूं, या घनगर्जन,
सब स्वर सुर और ताल में।
ऐसे ही स्वर मेरे गीतों में भरके,
वाणी को मेरी निखारना,
निखारना, निखारना।
तू स्वर की देवी, माँ वीणापाणि,
शुभ्रकमल सिंहासना।

ममतामयी मूरत, बुद्धि की सूरत,
प्रेम पूरण प्रति प्रेरणा।
‘अजस्र’ तेरे चरणों में बैठा,
कर जोड़े, करता माँ वंदना
ये वंदना, ये वंदना।
तू स्वर की देवी…

हाथ तेरा हो, शीश पे मेरे,
वाणी बुद्धि मेरी प्रखर बने।
शब्द स्वरों से निथर के निकले,
आशीष तेरा ‘अजस्र’ फले।
बुद्धि मेरी रुद्ध मन्द-सी बोझिल,
पल-पल उसको तू सँवारना,
सँवारना, सँवारना।
तू स्वर की देवी, माँ वीणापाणि,
शुभ्रकमल सिंहासना।

ममतामयी मूरत, बुद्धि की सूरत,
प्रेम पूरण प्रति प्रेरणा।
‘अजस्र’ तेरे चरणों में बैठा,
कर जोड़े करता माँ वंदना,
ये वंदना, ये वंदना।
तू स्वर की देवी…॥

परिचय-हिन्दी-साहित्य के क्षेत्र में डी. कुमार ‘अजस्र’ के नाम से पहचाने जाने वाले दुर्गेश कुमार मेघवाल की जन्म तारीख १७ मई १९७७ तथा स्थान बूंदी (राजस्थान) है। आप सम्प्रति से राज. उच्च माध्य. विद्यालय (गुढ़ा नाथावतान, बून्दी) में हिंदी प्राध्यापक (व्याख्याता) के पद पर सेवाएं दे रहे हैं। छोटी काशी के रूप में विश्वविख्यात बूंदी शहर में आवासित श्री मेघवाल स्नातक और स्नातकोत्तर तक शिक्षा लेने के बाद इसी को कार्यक्षेत्र बनाते हुए सामाजिक एवं साहित्यिक क्षेत्र विविध रुप में जागरूकता फैला रहे हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य और आलेख है, और इसके ज़रिए ही सामाजिक संचार माध्यम पर सक्रिय हैं। आपकी लेखनी को हिन्दी साहित्य साधना के निमित्त बाबू बालमुकुंद गुप्त हिंदी साहित्य सेवा सम्मान-२०१७, भाषा सारथी सम्मान-२०१८ सहित दिल्ली साहित्य रत्न सम्मान-२०१९, साहित्य रत्न अलंकरण-२०१९ और साधक सम्मान-२०२० आदि सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। हिंदीभाषा डॉटकॉम के साथ ही कई साहित्यिक मंचों द्वारा आयोजित स्पर्धाओं में भी प्रथम, द्वितीय, तृतीय एवं सांत्वना पुरस्कार पा चुके हैं। ‘देश की आभा’ एकल काव्य संग्रह के साथ ही २० से अधिक सांझा काव्य संग्रहों में आपकी रचनाएँ सम्मिलित हैं। प्रादेशिक-स्तर के अनेक पत्र-पत्रिकाओं में भी रचनाएं स्थान पा चुकी हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य एवं नागरी लिपि की सेवा, मन की सन्तुष्टि, यश प्राप्ति और हो सके तो अर्थ की प्राप्ति भी है।

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