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हिन्दी की गरिमा और उपयोगिता बढ़ती रहे, यही लक्ष्य हो

डॉ. आशा गुप्ता ‘श्रेया’
जमशेदपुर (झारखण्ड)
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विश्व हिंदी दिवस विशेष….

प्रत्येक वर्ष भारत में १० जनवरी को ‘विश्व हिंदी दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। हमारे भारत में हिंदी राजभाषा, संपर्क भाषा, राष्ट्रभाषा, राज्य भाषा और मातृभाषा के रूप में प्रयुक्त हो रही है। भाषा और साहित्य को किसी परिधि में बांधा कर नहीं रखा जा सकता है। लगभग पौने २०० वर्ष पूर्व हिंदी का वैश्विक विस्तार गिरमिटिया श्रमिकों द्वारा प्रारंभ (श्रमिक, जो बिहार, बंगाल, अवध, भारत के उत्तर-पश्चिम प्रांत से रहे जो मॉरिशस, अफ्रीका, फिजी आदि जगह चीनी, कोको, कपास, चाय आदि की कटाई के लिए ले जाए गए थे) हुआ। आज हिंदी विश्व में सर्वाधिक प्रयुक्त होने वाली भाषा बन गई है। जो भारतवासी विदेश जाते रहे हैं, या जाते हैं, वे अपनी भाषा और साहित्य संस्कृति को भी ले जाते हैं। उनकी संपर्क की भाषा हिंदी ही है।

इसको देखते हुए विश्व भर में हिंदी का विकास करने और इसके प्रचार करने के उद्देश्य से विश्व हिंदी सम्मेलनों की शुरुआत की गई। १० जनवरी १९७५ को नागपुर में पहला विश्व हिंदी सम्मेलन आयोजित किया गया। इस विशेष दिन को याद कर २००६ में भारतीय विदेश मंत्रालय ने विदेश में पहली बार विश्व हिंदी दिवस मनाया। तभी से प्रति वर्ष विश्व हिंदी दिवस मनाया जा रहा है। इसी क्रम में मॉरिशस, त्रिनिदाद और टोबैगो, इंग्लैंड, सूरीनाम, अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका और फिजी में कुल १२ ऐसे सम्मेलन हो चुके हैं।
विभिन्न भाषा का समावेश,
हर प्रांत देश सजा विदेश
गौरव हिंदी का सदा बढ़ाती,
प्रगतिशील है सुखद सन्देश..।

इस दिवस को मनाने का उद्देश्य हिंदी के प्रचार-प्रसार के प्रति जागरूकता पैदा करना और हिंदी को वैश्विक भाषा के रूप में पेश करना है। दिवस के माध्यम से पूरे विश्व को एक सूत्र में जोड़ने की कोशिश की जाती है। भारत के अतिरिक्त हिंदी भाषा भारत के पड़ोसी देशों जैसे नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि सहित भारतीय श्रमिकों द्वारा विकसित देशों-मॉरिशस, फिजी, सूरीनाम, गुयाना, त्रिनिदाद और टुबैगो आदि एवं आधुनिक विकसित देशों- इंग्लैंड, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, कनाडा आदि में भी बोली जाती है। यह हमारे लिए गर्व की बात है कि, विश्वभर में हिंदी भाषा को प्रचारित- प्रसारित करने के उद्देश्य से प्रति वर्ष अनेक अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय संस्थानों द्वारा गोष्ठी, विचार विमर्श, कवि सम्मेलन आदि किए जाते हैं, पर अभी भी प्रचार-प्रसार के लिए लगातार प्रयास आवश्यक है। भारत की नई पीढ़ी को हिंदी का महत्व समझाना और जागरूकता की उतनी ही आवश्यकता है। सार्थक विचार विमर्श, सृजनात्मक साहित्य, लेखन और कार्य हिंदी की गरिमा बढ़ाने में सहायक होंगी, जिससे हमारे देश की सदियों की भाषा संस्कृति की गरिमा और उपयोगिता बढ़ती रहे। इसके लिए हम सभी लगातार प्रयत्नशील रहें, यही हमारा लक्ष्य रहे।

परिचय- डॉ.आशा गुप्ता का लेखन में उपनाम-श्रेया है। आपकी जन्म तिथि २४ जून तथा जन्म स्थान-अहमदनगर (महाराष्ट्र)है। पितृ स्थान वाशिंदा-वाराणसी(उत्तर प्रदेश) है। वर्तमान में आप जमशेदपुर (झारखण्ड) में निवासरत हैं। डॉ.आशा की शिक्षा-एमबीबीएस,डीजीओ सहित डी फैमिली मेडिसिन एवं एफआईपीएस है। सम्प्रति से आप स्त्री रोग विशेषज्ञ होकर जमशेदपुर के अस्पताल में कार्यरत हैं। चिकित्सकीय पेशे के जरिए सामाजिक सेवा तो लेखनी द्वारा साहित्यिक सेवा में सक्रिय हैं। आप हिंदी,अंग्रेजी व भोजपुरी में भी काव्य,लघुकथा,स्वास्थ्य संबंधी लेख,संस्मरण लिखती हैं तो कथक नृत्य के अलावा संगीत में भी रुचि है। हिंदी,भोजपुरी और अंग्रेजी भाषा की अनुभवी डॉ.गुप्ता का काव्य संकलन-‘आशा की किरण’ और ‘आशा का आकाश’ प्रकाशित हो चुका है। ऐसे ही विभिन्न काव्य संकलनों और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में भी लेख-कविताओं का लगातार प्रकाशन हुआ है। आप भारत-अमेरिका में कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्बद्ध होकर पदाधिकारी तथा कई चिकित्सा संस्थानों की व्यावसायिक सदस्य भी हैं। ब्लॉग पर भी अपने भाव व्यक्त करने वाली श्रेया को प्रथम अप्रवासी सम्मलेन(मॉरीशस)में मॉरीशस के प्रधानमंत्री द्वारा सम्मान,भाषाई सौहार्द सम्मान (बर्मिंघम),साहित्य गौरव व हिंदी गौरव सम्मान(न्यूयार्क) सहित विद्योत्मा सम्मान(अ.भा. कवियित्री सम्मेलन)तथा ‘कविरत्न’ उपाधि (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ) प्रमुख रुप से प्राप्त हैं। मॉरीशस ब्रॉड कॉरपोरेशन द्वारा आपकी रचना का प्रसारण किया गया है। विभिन्न मंचों पर काव्य पाठ में भी आप सक्रिय हैं। लेखन के उद्देश्य पर आपका मानना है कि-मातृभाषा हिंदी हृदय में वास करती है,इसलिए लोगों से जुड़ने-समझने के लिए हिंदी उत्तम माध्यम है। बालपन से ही प्रसिद्ध कवि-कवियित्रियों- साहित्यकारों को देखने-सुनने का सौभाग्य मिला तो समझा कि शब्दों में बहुत ही शक्ति होती है। अपनी भावनाओं व सोच को शब्दों में पिरोकर आत्मिक सुख तो पाना है ही,पर हमारी मातृभाषा व संस्कृति से विदेशी भी आकर्षित होते हैं,इसलिए मातृभाषा की गरिमा देश-विदेश में सुगंध फैलाए,यह कामना भी है